Karakat Vidhansabha 2025: काराकाट विधानसभा क्षेत्र, जिसे वामपंथ का गढ़ कहा जाता है, बिहार की राजनीति में हमेशा से चर्चा का केंद्र रहा है। रोहतास जिले में स्थित यह सीट न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि बिहार की विचारधारात्मक राजनीति का प्रतीक भी रही है। 1967 में विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित काराकाट, काराकाट लोकसभा क्षेत्र का एक प्रमुख हिस्सा है। यहां अब तक हुए 14 विधानसभा चुनावों का इतिहास यह दर्शाता है कि मतदाता किसी एक दल पर स्थायी भरोसा नहीं करते, बल्कि राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार हर बार नए समीकरण बनते हैं।
चुनावी इतिहास
काराकाट में कभी समाजवादी लहर तो कभी वामपंथी उभार देखने को मिला है। यहां से चार बार जीत दर्ज करने वाले भाकपा (माले) के अरुण सिंह कुशवाहा ने इस सीट को लाल झंडे की पहचान दी है। वहीं संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, कांग्रेस, जनता पार्टी और जनता दल — सभी ने दो-दो बार यहां से जीत का स्वाद चखा है। राजद और जेडीयू को अब तक एक-एक बार यह सीट मिली है, जो यह साबित करता है कि काराकाट में राजनीतिक हवा बार-बार बदलती रहती है।
Nokha Vidhansabha 2025: भूमिहार बनाम यादव समीकरण पर टिकी सियासत
काराकाट की राजनीतिक कहानी बिहार की बदलती राजनीति की झलक दिखाती है। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने पहली जीत हासिल की, जबकि 1969 में भी वही पार्टी सत्ता तक पहुंची। 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) और 1990 में जनता दल ने जीत दर्ज की। 2000 के बाद यह सीट पूरी तरह से वामपंथ के रंग में रंग गई, जब भाकपा (माले) के अरुण सिंह लगातार तीन बार (2000, फरवरी 2005, अक्टूबर 2005) विधायक बने।
तुलसी सिंह इस सीट के एक और प्रभावशाली नेता रहे, जो विभिन्न दलों से पांच बार विधायक चुने गए। 2010 में भाजपा के राजेश्वर राज ने इस लाल गढ़ में सेंध लगाई और जीत दर्ज की। लेकिन 2015 में आरजेडी के संजय यादव ने उन्हें 12,119 वोटों से पराजित कर सीट वापस महागठबंधन के खेमे में ला दी।
2020 में जब भाकपा (माले) महागठबंधन का हिस्सा बनी, तो अरुण सिंह कुशवाहा ने एक दशक बाद शानदार वापसी करते हुए भाजपा के राजेश्वर राज को 18,189 वोटों से हराया। यह जीत बताती है कि वाम राजनीति का प्रभाव अब भी काराकाट की धरती पर जीवित है, बशर्ते उसे गठबंधन का सहारा मिले।
जातीय समीकरण
काराकाट का चुनावी गणित जातीय और विचारधारात्मक दोनों स्तरों पर रोचक है। यहां लगभग 17.61% अनुसूचित जाति और 8.6% मुस्लिम मतदाता हैं, जो महागठबंधन के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं। वहीं भूमिहार, यादव, कुशवाहा और राजपूत जातियों की भी निर्णायक भूमिका है। बढ़ते मतदाता और बदलते जातीय समीकरण 2025 के विधानसभा चुनाव को और दिलचस्प बना देंगे।






















