रफीगंज विधानसभा सीट (Rafiqanj Assembly Seat), जो औरंगाबाद जिले में आती है, बिहार की राजनीति में हमेशा से ही एक संवेदनशील और निर्णायक क्षेत्र रही है। 1951 में स्थापित इस सीट ने 17 विधानसभा चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों को सत्ता का स्वाद चखाया। इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने छह बार, आरजेडी और जेडीयू ने तीन-तीन बार, जनता पार्टी दो बार, जबकि स्वतंत्र पार्टी, सीपीआई और भारतीय जनता संघ ने एक-एक बार जीत दर्ज की।
चुनावी इतिहास
2005 का साल रफीगंज की राजनीति में अहम मोड़ साबित हुआ। फरवरी 2005 के चुनाव में कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत नहीं जुटा सकी, और रफीगंज में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के बीच कड़ी टक्कर रही। जातीय समीकरण और स्थानीय नेतृत्व ने इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई। अक्टूबर 2005 में सत्ता परिवर्तन और जेडीयू-भाजपा गठबंधन के साथ रफीगंज सीट पर जेडीयू उम्मीदवार ने जीत दर्ज की, जिसने बिहार में लंबे समय तक स्थिर सरकार के रास्ते खोले।
औरंगाबाद विधानसभा सीट : राजपूत वोटों की ताकत और आगामी चुनाव की रणनीतियां
2010 के विधानसभा चुनाव में रफीगंज की राजनीतिक जमीं बदल रही थी। जेडीयू ने अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन विपक्षी दलों ने सशक्त चुनौती दी। उम्मीदवारों का जातीय आधार और स्थानीय मुद्दे निर्णायक साबित हुए। जेडीयू और राजद के बीच कड़ी टक्कर रही, जिसमें जेडीयू को थोड़ी बढ़त मिली। 2015 का चुनाव रफीगंज के लिए असल बदलाव लेकर आया। राजद, कांग्रेस और जेडीयू ने महागठबंधन बनाया, जिससे भाजपा के लिए चुनौती बढ़ गई। इस गठबंधन की लहर में राजद उम्मीदवार ने जीत हासिल की और सीट का सत्ता समीकरण पूरी तरह बदल गया।
2020 में रफीगंज विधानसभा सीट पर आरजेडी के मोहम्मद निहालुद्दीन ने निर्दलीय प्रत्याशी प्रमोद सिंह को 9 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया। जेडीयू से दो बार के विधायक रहे अशोक सिंह तीसरे नंबर पर रहे, जबकि बसपा के मनोज सिंह चौथे स्थान पर रहे।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण पर नजर डालें तो रफीगंज में ब्राह्मण, राजपूत, यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। अनुसूचित जाति मतदाता 27.1% और मुस्लिम मतदाता 14.3% हैं। यही जातीय और सामाजिक समीकरण आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव में फिर से राजनीतिक रणनीति और परिणाम को प्रभावित करेंगे।






















