बिहार के नवादा जिले में स्थित हिसुआ विधानसभा सीट (Hisua Assembly 2025) हमेशा से ही राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। नवादा लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक होने के नाते हिसुआ की भूमिका विधानसभा और लोकसभा दोनों स्तरों पर निर्णायक साबित होती रही है। 1957 से अस्तित्व में रहने वाली इस सीट ने राजनीतिक इतिहास में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और मतदाताओं की निष्ठा का एक स्पष्ट उदाहरण पेश किया है।
चुनावी इतिहास
हिसुआ की शुरुआत में कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा। 1957 और 1962 में राजकुमारी देवी की जीत ने कांग्रेस की मजबूत पकड़ को दर्शाया। इसके बाद शत्रुघ्न शरण सिंह ने 1967, 1969 और 1972 में लगातार जीत दर्ज कर कांग्रेस का प्रभुत्व बनाए रखा। 1977 में पहली बार जनता पार्टी के बाबू लाल सिंह ने कांग्रेस को चुनौती दी और सीट पर कब्जा किया। इसके बाद आदित्य सिंह ने निर्दलीय और कांग्रेस दोनों रूपों में लंबे समय तक यहां की राजनीति में दबदबा बनाए रखा, 1980 से लेकर 2005 तक लगातार छह बार विधायक चुने गए।
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2005 के विधानसभा चुनाव ने हिसुआ के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया, जब भाजपा के अनिल सिंह ने सीट पर कब्जा किया। अनिल सिंह ने तीन बार लगातार जीत दर्ज की, लेकिन 2020 के चुनाव में कांग्रेस की नीतू कुमारी ने उन्हें 17,091 मतों के बड़े अंतर से हराकर सीट पर अपनी वापसी सुनिश्चित की। यह जीत कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत थी, खासकर 15 साल बाद।
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के उम्मीदवार विवेक ठाकुर ने हिसुआ में 19,085 वोटों की बढ़त लेकर पार्टी के लिए भविष्य की संभावनाओं को मजबूत किया। यह संकेत देता है कि हिसुआ विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मुकाबला बेहद कठिन और प्रतिस्पर्धात्मक रहेगा।
जातीय और सामाजिक संरचना
हिसुआ की सामाजिक संरचना भी राजनीतिक रणनीति के लिहाज से अहम है। यह सीट सामान्य (जनरल) श्रेणी की है, लेकिन यहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं की हिस्सेदारी 28.07% और मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी 10.7% है। 93.36% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जबकि केवल 6.64% शहरी मतदाता हैं। इस ग्रामीण और जातिगत मिश्रित संरचना के कारण चुनावी रणनीति और उम्मीदवार चयन में स्थानीय मुद्दे और जातिगत समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पिछले चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि 2020 में कांग्रेस की नीतू कुमारी को 94,930 वोट मिले, जबकि भाजपा के अनिल सिंह को 77,839 वोट मिले। खास बात यह रही कि तीसरे नंबर पर नोटा को भी 4,000 से अधिक वोट मिले, जो मतदाताओं की असंतोष की झलक पेश करता है। हिसुआ विधानसभा सीट का इतिहास और सामाजिक संरचना इसे बिहार की राजनीति में हमेशा से ही महत्वपूर्ण बनाती रही है। 2025 के विधानसभा चुनाव में यह सीट राजनीतिक दलों के लिए निर्णायक साबित हो सकती है और हिसुआ की राजनीति का नया चेहरा उभर सकता है।






















