बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए जदयू (JDU) ने अपनी रणनीति को नया रूप देते हुए बुधवार को 57 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की। इस सूची में 30 नए चेहरे मैदान में उतारे गए हैं, जबकि 27 मौजूदा उम्मीदवारों को फिर से टिकट दिया गया है। पार्टी ने इस बार तीन बाहुबली नेताओं — अमरेंद्र सिंह, धूमल सिंह और अनंत सिंह को भी टिकट देकर उनकी राजनीतिक पकड़ का लाभ उठाने की रणनीति अपनाई है।
लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि जेडीयू के उम्मीदवारों की पहली सूची में किसी मुस्लिम का नाम शामिल नहीं है। बीजेपी की 71 उम्मीदवारों की सूची में कोई भी मुस्लिम नाम नहीं है तो जेडीयू ने भी किसी मुस्लिम पर भरोसा नहीं जताया। हालांकि, अभी जेडीयू के 44 उम्मीदवारों के नाम घोषित होने हैं।
जेडीयू ने भले ही पहली लिस्ट में किसी मुस्लिम को टिकट न दिया हो, लेकिन चार बाहुबली नेताओं पर जरूर भरोसा जताया है। इस तरह से सवाल उठता है कि क्या बीजेपी की तरह जेडीयू का भरोसा मुस्लिम समुदाय से उठ गया है?
दरअसल,
जेडीयू ने अपनी पहली सूची में 10 अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है तो छह भूमिहार समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं। दलित समुदाय से देखें तो सिंघेश्वर से रमेश ऋषिदेव, सोनबरसा से रत्नेश सादा, कुशेश्वरस्थान से अतिरेक कुमार, सकरा से आदित्य कुमार, कांटी, भोरे से सुनील कुमार, राजापाकर से महेन्द्र राम, कल्याणपुर से महेश्वर हजारी, अलोली से रामचंद्र सदा, राजगीर से कौशल किशोर, फुलवारी से श्याम रजक, मसौढ़ी से अरुण मांझी और राजपुर से संतोष कुमार निराला को टिकट दिया है।
2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो एनडीए के साथ चार दल थे, जिसमें जेडीयू को छोड़कर किसी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट ही नहीं दिया था। जेडीयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, लेकिन उन सभी को हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव के बाद जरूर बसपा से जीते जमा खान को नीतीश कुमार ने जेडीयू में शामिल कराकर अपनी कैबिनेट में शामिल करा लिया था। जेडीयू की पहली लिस्ट में जमा खान का नाम भी शामिल नहीं है। चैनपुर सीट पर जेडीयू ने प्रत्याशी अभी घोषित नहीं किया।
जेडीयू की पहली लिस्ट में किसी भी मुस्लिम कैंडिडेट का नाम न होने से सवाल उठने लगे हैं कि क्या नीतीश कुमार का भी मुस्लिमों से मोहभंग हो गया है। दरअसल वक्फ़ बोर्ड के मुद्दे पर नीतीश कुमार की पार्टी ने सरकार का समर्थन कर दिया था, जिससे पार्टी के कई मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा भी दे दिया था।
पिछले चुनाव में मुसलमानों के 76 फीसदी वोट महागठबंधन को मिले हैं और जीडीएसएफ गठबंधन जिसमें एआईएमआईएम भी शामिल थी, उसे तकरीबन 11 फीसदी वोट मिले हैं। इस तरह से 13 फीसदी मुस्लिम वोट एनडीए के खाते में गए थे, लेकिन एक भी मुस्लिम जेडीयू से जीत नहीं सका, जबकि इससे पहले जेडीयू से मुस्लिम विधायक चुनाव जीतते रहे हैं।
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सूची में महिलाओं को भी स्थान मिला है, लेकिन केवल चार महिलाओं को टिकट दिया गया है। जदयू ने इस बार सत्ता विरोधी लहर और स्थानीय विरोध से निपटने के लिए नए उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी है। इसके अलावा, युवा नेताओं और दलबदलियों को भी मौका दिया गया है, ताकि पार्टी का जनाधार मजबूत हो और विधानसभा चुनाव में व्यापक पकड़ बनाई जा सके।
कुछ ऐसे विधानसभा क्षेत्र भी हैं, जहां जदयू ने चिराग पासवान के उम्मीदवारों की घोषणा के बाद भी अपने कैंडिडेट उतारे। मोरवा, सोनबरसा, मटिहानी और राजगीर जैसी सीटों पर पार्टी ने अपने ही उम्मीदवार खड़ा किया है।
जेडीयू ने इस बार नेताओं के पुत्र और पुत्रियों को भी टिकट दिया है। मांझी सीट से पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह, गायघाट से जेडीयू एमएलसी दिनेश सिंह की बेटी कोमल सिंह और कुशेश्वरस्थान से अतिरेक कुमार को मैदान में उतारा गया है। यह कदम पार्टी की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, ताकि राजनीतिक परिवारों का जनाधार और अनुभव चुनाव में काम आए।
इस सूची में नए उम्मीदवारों की पूरी लिस्ट इस प्रकार है:
कविता साहा (मधेपुरा), अतिरेक कुमार (कुशेश्वरस्थान), ईश्वर मंडल (दरभंगा ग्रामीण), कोमल सिंह (गयाघाट), अजय कुशवाहा (मीनापुर), आदित्य कुमार (सकरा), अजीत कुमार (कांटी), मंजीत सिंह (बरौली), भीष्म कुशवाहा (जीरादेई), विकास कुमार (रघुनाथपुर), इंद्रदेव पटेल (बड़हरिया), धूमल सिंह (एकमा), रणधीर सिंह (मांझी), छोटे लाल राय (परसा), महेंद्र राम (राजापाकर), मृणाल मांजरिक (वारिसनगर), रवीना कुशवाहा (विभूतिपुर), अनंत सिंह (मोकामा), श्याम रजक (फुलवारी शरीफ), अरुण मांझी (मसौढ़ी), राधाचरण साह (संदेश), भगवान सिंह कुशवाहा (जगदीशपुर), राहुल सिंह (डुमरांव), संतोष कुमार निराला (राजपुर), रूहेल रंजन (इस्लामपुर), डॉ कुमार पुष्पंजय (बरबीघा), नचिकेता मंडल (जमालपुर), ब्लू मंडल (खगड़िया), राज कुमार सिंह (मटिहानी), अभिषेक कुमार (चेरिया बरियारपुर)।






















