आईसीसी महिला क्रिकेट विश्व कप 2025 अपने निर्णायक दौर में है। यह टूर्नामेंट 50 ओवर के प्रारूप में खेला जा रहा है और यह इसका 13वाँ संस्करण है। इस बार भारत और श्रीलंका संयुक्त रूप से इसकी मेजबानी कर रहे हैं। कुल 8 टीमें – भारत, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान और बांग्लादेश – इस प्रतियोगिता में भाग ले रही हैं। दिलचस्प बात यह कि इस बार केवल एशियाई और कॉमनवेल्थ (सेना) देशों की टीमें इसमें शामिल हैं।
महिला क्रिकेट विश्व कप का इतिहास बेहद प्रेरणादायक है। पहला महिला विश्व कप 1973 में इंग्लैंड में खेला गया था जो कि पुरुष विश्व कप (1975) से दो वर्ष पहले। इसकी शुरुआत इंटरनेशनल वूमेन्स क्रिकेट काउंसिल (IWCC) ने की थी, जो बाद में आईसीसी (ICC) में विलय हो गया। इंग्लैंड ने उस पहले टूर्नामेंट में ऑस्ट्रेलिया को हराकर खिताब जीता था। तब से लेकर अब तक महिला क्रिकेट ने लंबा सफर तय किया है। सीमित संसाधनों और कम समर्थन से लेकर आज करोड़ों दर्शकों वाले टूर्नामेंट तक। ऑस्ट्रेलिया अब तक सबसे सफल टीम है जिसने 7 बार विश्व कप जीता है, जबकि इंग्लैंड ने 4 बार। भारत अब तक दो बार फाइनल तक पहुंचा है — 2005 और 2017 में, मगर खिताब अभी तक हाथ नहीं लगा। मिताली राज, झूलन गोस्वामी, हरमनप्रीत कौर और स्मृति मंधाना जैसे खिलाड़ियों ने भारतीय महिला क्रिकेट को विश्व स्तर पर नई पहचान दिलाई।
श्रीलंका के कोलंबो में लगातार बारिश ने टूर्नामेंट की लय बिगाड़ दी है। अब तक 5 मैच रद्द हो चुके हैं, जिसके चलते अंकों का बंटवारा करना पड़ा। अभी तक ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका ने सेमीफाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली है, जबकि श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश बाहर हो चुके हैं। भारत और न्यूजीलैंड के बीच अंतिम सेमीफाइनल स्थान के लिए संघर्ष जारी है। दोनों के 5 मैचों में 4–4 अंक हैं, मगर भारत का रन रेट कहीं बेहतर है। न्यूजीलैंड की बदकिस्मती कहें या भारत की खुशकिस्मती उनके दो मैच बारिश की भेंट चढ़ गए। भारत के अभी न्यूजीलैंड और बांग्लादेश के खिलाफ मुकाबले बाकी हैं, जबकि न्यूजीलैंड को इंग्लैंड और भारत जैसी मजबूत टीमों से भिड़ना है। लिहाजा भारत की सेमीफाइनल में पहुंचने की उम्मीदें फिलहाल कायम हैं।
कागज़ पर भारतीय टीम मजबूत दिखती है। स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत कौर जैसी अनुभवी खिलाड़ी, दीप्ति शर्मा जैसी ऑलराउंडर और ऋचा घोष जैसी युवा शक्ति। लेकिन सवाल यह है कि इतने नामों के बावजूद प्रदर्शन में निरंतरता क्यों नहीं है? टीम लगातार तीन मैच हार चुकी है। स्मृति पर लगातार दबाव है क्योंकि उनकी साथी ओपनर प्रतिका रावल रन तो बना रही हैं, लेकिन स्ट्राइक रोटेशन में विफल हैं। सबसे बड़ी भूल रही जेमिमा रोड्रिग्स को नंबर तीन से हटाना और फिर उन्हें टीम से बाहर करना। यह वही खिलाड़ी हैं जो बड़े मैचों में हमेशा भरोसेमंद साबित हुई हैं।
स्पिन विभाग में युवा श्री चरणी लगातार फ्लॉप रही हैं, मगर अनुभवी राधा यादव को बेंच पर बैठाया गया है जो फील्डिंग और बल्लेबाज़ी में भी बेहतर योगदान दे सकती हैं। तेज़ गेंदबाज़ी में रेणुका ठाकुर को लेकर चयनकर्ताओं का भरोसा डगमगाता दिखा। बार-बार अंदर-बाहर होने से उनका आत्मविश्वास कमजोर हुआ है। अमनजोत कौर जैसी ऑलराउंडर का रोल टीम में स्पष्ट नहीं है, वहीं हरमनप्रीत और दीप्ति जैसी अनुभवी जोड़ी अभी तक एक भी मैच फिनिश नहीं कर पाई।
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स्पष्ट है कि यह सिर्फ खिलाड़ियों का नहीं, बल्कि कोचिंग स्टाफ का भी असफलता भरा प्रदर्शन है। टीम लंबे समय से एक ही दिशा में फंसी हुई लगती है न रणनीति में बदलाव, न प्लेइंग इलेवन में स्पष्ट सोच। अगर कोच और कप्तान कई सालों से साथ काम कर रहे हैं, तो यह तालमेल मैदान पर क्यों नहीं दिखता? आखिर कोचिंग स्टाफ वहां सिर्फ यात्रा करने के लिए है या खिलाड़ियों की गलतियों पर काम करने के लिए?
बीसीसीआई ने खिलाड़ियों को समान वेतन देकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया था। यह लैंगिक समानता की दिशा में बड़ी उपलब्धि थी। लेकिन अब समय है कि खिलाड़ी भी समान प्रदर्शन दिखाएं। सिर्फ वेतन समान होने से प्रतिष्ठा नहीं मिलती, मैदान पर भी आत्मविश्वास, रणनीति और जीत की भूख समान होनी चाहिए। भारतीय महिला टीम की स्थिति इस समय “अगर” और “कभी-कभी” के भरोसे पर टिकी है। हो सकता है किसी चमत्कारिक प्रदर्शन से टीम फाइनल में पहुंच जाए, हो सकता है जीत भी जाए। लेकिन सच यह है कि इस बार का प्रदर्शन पिछले दो दशकों में सबसे निराशाजनक रहा है। यह समय आत्ममंथन का है केवल खिलाड़ियों के लिए नहीं, बल्कि चयनकर्ताओं और कोचिंग स्टाफ के लिए भी। क्योंकि क्रिकेट में प्रतिभा जरूरी है, लेकिन संतुलन और समझदारी उससे भी अधिक। “अब वक्त आ गया है कि महिला क्रिकेट में केवल समान वेतन नहीं, समान जिम्मेदारी और समान जज़्बा भी दिखे।”
(लेख- मो. हेसामुद्दीन अंसारी)






















