AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने बिहार की सियासत में एक बार फिर हलचल मचा दी है। उन्होंने एनडीए सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि बिहार में अब “नया जंगलराज” चल रहा है। ओवैसी ने दावा किया कि राज्य की जनता अब जाग चुकी है और इस बार AIMIM को मौका देगी।
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एक निजी मीडिया चैनल से बात करते हुए ओवैसी ने गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान को चुनौती दी जिसमें उन्होंने देश में “घुसपैठ” का मुद्दा उठाया था। ओवैसी ने कहा, “अगर घुसपैठ हो रही है, तो जिम्मेदार कौन है? देश के गृह मंत्री खुद हैं या कोई और?” उन्होंने कहा कि जब सीमा सुरक्षा बल (BSF) गृह मंत्रालय के अधीन है, तो देश में किसी भी अवैध प्रवेश की जिम्मेदारी सीधे केंद्र सरकार की है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “अमित शाह बार-बार घुसपैठ की बात करते हैं, लेकिन सरकार उन्हीं की है। तो आखिर जवाबदेही कौन लेगा?”
वक्फ कानून पर ओवैसी का पलटवार
वक्फ कानून को खत्म करने की बात पर ओवैसी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “पहले हिंदू एंडॉवमेंट एक्ट बदलकर दिखाइए, फिर वक्फ कानून की बात कीजिए।” उन्होंने कहा कि वक्फ कानून में बदलाव केवल दो तरीकों से हो सकता है — या तो सरकार खुद इसमें संशोधन करे या फिर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आए। ओवैसी ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार सिर्फ “धार्मिक ध्रुवीकरण” के एजेंडे पर काम कर रही है और मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है।
मुस्लिम आबादी और समान अधिकारों की मांग
ओवैसी ने कहा कि बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 17 फीसदी है, लेकिन उनकी राजनीतिक भागीदारी नगण्य है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के कुछ नेता मुसलमानों को “घुसपैठिया” और “नमक हराम” कहकर अपमानित करते हैं। ओवैसी ने सवाल उठाया कि आखिर यह देश कब सभी नागरिकों को समान अधिकार देगा, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से क्यों न हो।
सीमांचल की बदहाली पर सवाल
सीमांचल इलाके में विकास के अभाव पर ओवैसी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस क्षेत्र के लिए सिर्फ वादे किए हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा, “बिहार की हालत ऐसी है, जैसे अफ्रीका के संघर्षग्रस्त देशों की होती है। यहां बाढ़, बेरोजगारी और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली ने जनता की कमर तोड़ दी है।”
ओवैसी ने यह भी कहा कि सरकार बाढ़ नियंत्रण जैसे दीर्घकालिक कामों की बजाय चुनावी घोषणाओं में व्यस्त है। उन्होंने चेताया कि महिलाओं के खातों में पैसे भेजने जैसी योजनाएं सिर्फ चुनावी लाभ के लिए हैं, जो भविष्य में “बहुत महंगी” साबित होंगी। उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां भी ऐसी नीतियां अंततः सरकार की विफलता का कारण बनीं।






















