बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2025 Voting Record) का दूसरा चरण ऐतिहासिक साबित हुआ है। बिहार में कुल 66.91% मतदान हुआ। 1951 में हुए पहले बिहार चुनाव के बाद से यह सबसे ज़्यादा है। बिहार में महिला मतदाताओं का मतदान इतिहास में सबसे ज़्यादा रहा। राज्य के 122 विधानसभा क्षेत्रों में 68.74 प्रतिशत मतदान के साथ इस बार के चुनाव ने न केवल पिछले सभी विधानसभा बल्कि लोकसभा चुनावों के भी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। पहले चरण की तुलना में इस बार मतदाताओं में कहीं अधिक जोश देखने को मिला। 6 नवंबर को हुए पहले फेज में 121 सीटों पर 65.08 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि दूसरे चरण में यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 69 फीसदी तक पहुंच गया। दोनों चरणों को मिलाकर औसतन 66.91 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई, जो आज़ादी के बाद का सबसे ऊंचा मतदान है।
चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 के विधानसभा चुनाव में इन्हीं 122 सीटों पर मात्र 58.8 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार करीब 10 प्रतिशत अधिक लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। यदि 2015 और 2010 के आंकड़ों से तुलना करें तो क्रमशः 58.3 और 53.8 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस तरह, बिहार की जनता ने इस बार राजनीतिक जागरूकता और लोकतांत्रिक भागीदारी का एक नया उदाहरण पेश किया है।
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2020 के मुकाबले इस बार पूरे बिहार में कुल 9.6 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ। दिलचस्प यह है कि पुरुषों से कहीं ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले। राज्य में कुल 243 सीटों पर 62.8 फीसदी पुरुषों ने मतदान किया, जबकि महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6 रहा- यानी करीब 8.8 प्रतिशत अधिक। महिलाओं की यह रिकॉर्डतोड़ भागीदारी इस चुनाव की दिशा और परिणाम दोनों पर निर्णायक असर डाल सकती है।
सीमांचल में वोटिंग का नया इतिहास
सीमांचल क्षेत्र इस बार वोटिंग के लिहाज से सबसे आगे रहा। कटिहार जिले में 78.60 प्रतिशत वोटिंग हुई, जो पूरे बिहार में सर्वाधिक है। किशनगंज और पूर्णिया भी इससे पीछे नहीं रहे- दोनों जगह 76 से 78 प्रतिशत के बीच मतदान हुआ। पूर्णिया की कसबा और किशनगंज की ठाकुरगंज सीट पर तो 81 फीसदी से अधिक वोट पड़े, जो एक ऐतिहासिक आंकड़ा है।

इन सीटों पर 2020 की तुलना में 10 प्रतिशत से अधिक मतदान बढ़ा है। दिलचस्प यह है कि यही इलाका मुस्लिम बहुल है और यहां घुसपैठ का मुद्दा, पहचान की राजनीति और SIR (Social Inclusion Ratio) का असर भी देखने को मिला। इस क्षेत्र की अधिक वोटिंग राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव ला सकती है, खासकर उन दलों के लिए जो सीमांचल की राजनीति पर लंबे समय से निर्भर रहे हैं।
महिलाओं की निर्णायक भूमिका
बिहार के चुनावी इतिहास में यह पहली बार है जब महिला वोटरों की भागीदारी पुरुषों से इतनी अधिक रही। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार की “महिला सशक्तिकरण” नीतियों और केंद्र सरकार की योजनाओं ने ग्रामीण महिलाओं को मतदान के लिए प्रेरित किया है। वहीं, विपक्ष के लिए यह एक चुनौती हो सकती है क्योंकि ग्रामीण और सीमांचल क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ी हुई भागीदारी एनडीए के पक्ष में मानी जा रही है।
इतिहास गवाह है कि जब भी बिहार में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है, लालू यादव की पार्टी ने सत्ता संभाली है- जैसे 1990, 1995 और 2000 के चुनावों में। लेकिन इस बार के वोटिंग पैटर्न और महिला मतदाताओं की सक्रियता के कारण समीकरण बदलते दिख रहे हैं। मंगलवार शाम आए एग्जिट पोल्स भी यही संकेत दे रहे हैं कि एनडीए सरकार बनाने के करीब हो सकता है।
बिहार ने लोकतंत्र को दिया नया अध्याय
आज़ादी के बाद पहली बार बिहार में इतना अधिक मतदान दर्ज हुआ है। यह सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं, बल्कि लोकतंत्र के प्रति जनता के बढ़ते विश्वास का प्रतीक है। चाहे सीमांचल की गलियां हों या मगध की धरती, हर जगह जनता ने अपनी बात मतपेटियों में दर्ज की है। अब बिहार की सियासत उसी उत्साह के साथ नतीजों का इंतजार कर रही है।






















