साल 2000 का बिहार विधानसभा चुनाव (2000 Bihar) न सिर्फ सत्ता की बल्कि “जाति, अपराध और भ्रष्टाचार” के इर्द-गिर्द लड़ी गई एक ऐतिहासिक लड़ाई थी। यह वह दौर था जब लालू प्रसाद यादव का “मण्डल मैजिक” धीरे-धीरे फीका पड़ रहा था और बिहार की जनता “जंगल राज” के आरोपों से त्रस्त होकर विकल्प तलाश रही थी।
‘चारा घोटाले’ का भूत और लालू का पतन
1996 में 37.7 करोड़ रुपए के चारा घोटाले ने लालू प्रसाद को सत्ता के सिंहासन से उतार फेंका। जब सीबीआई ने जांच की कमान संभाली, तो लालू ने 25 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया, लेकिन सत्ता की बागडोर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंपकर “परिवारवाद” की नई परिभाषा गढ़ी। उनका दावा था— “यह साजिश है! गरीबों को दबाने के लिए मुझे फंसाया जा रहा है।”
शंकर बिगहा नरसंहार और ‘राष्ट्रपति शासन’ का खेल
25 जनवरी 1999 को जहानाबाद के शंकर बिघा में 22 दलितों की निर्मम हत्या ने बिहार को झकझोर दिया। केंद्र की भाजपा-नीत सरकार ने “कानून व्यवस्था विफल” का हवाला देकर 11 फरवरी 1999 को राबड़ी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया। लेकिन, राज्यसभा में प्रस्ताव गिरने के बाद राबड़ी 2 मार्च 2000 को फिर सीएम बनीं। लालू ने इसे “दलित-पिछड़ों के खिलाफ षड्यंत्र” बताया।
‘राबड़ी-मोदी संवाद’: विधानसभा का वह ऐतिहासिक दृश्य
विधानसभा में भाजपा के सुशील मोदी ने राबड़ी देवी पर निशाना साधते हुए कहा— “मुख्यमंत्री आवास से बड़े अपराधियों को बाहर निकालें!” राबड़ी ने शांत भाव से जवाब दिया— “ठीक है, उन्हें आपके घर भेज देंगे।” यह वाकयात बिहार की राजनीतिक व्यंग्यपूर्ण संस्कृति का प्रतीक बन गया।
2020 का बिहार विधानसभा चुनाव: जाति और मुद्दों का संगम.. बदलती राजनीति की तस्वीर
BJP-समता गठजोड़ का ‘जातीय शतरंज’
2000 के चुनाव से पहले भाजपा और समता पार्टी ने गैर-यादव पिछड़ों (कुर्मी, कोइरी) और उच्च जातियों (भूमिहार, कायस्थ) को लुभाने की रणनीति बनाई। लालू का यादव-मुस्लिम वोट बैंक अभी भी मजबूत था, लेकिन शहरी मध्यवर्ग और अति पिछड़े वर्ग में BJP का प्रभाव बढ़ रहा था।
चुनावी गणित:
• 1998 में राजद ने 54 में से 17 लोकसभा सीटें जीतीं।
• 1999 में सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गई।
• 2000 का लक्ष्य: “लालू मुक्त बिहार” का नारा।
‘जंगल राज’ का प्रचार और जनता का बंटवारा
लालू के विरोधियों ने बिहार को “अराजकता का गढ़” बताया। सड़कों पर भीड़तंत्र, अस्पतालों में दवाइयों की कमी, और स्कूलों में शिक्षकों की अनुपस्थिति आम बात थी। लेकिन, ग्रामीण इलाकों में लालू का रहनुमाई अंदाज़ और “पिछड़ा अस्मिता” का नारा अभी भी काम कर रहा था।
यह चुनाव न सिर्फ लालू प्रसाद के “अजेय आभामंडल” को चुनौती दे रहा था, बल्कि बिहार की राजनीति को जाति से परे ले जाने की कोशिश भी थी। हालांकि, 2000 में राजद फिर सत्ता में आई, लेकिन यही वह मोड़ था जब नीतीश कुमार और सुशील मोदी जैसे नेताओं ने BJP-समता गठजोड़ के साथ नए बिहार का सपना देखना शुरू किया।






















