बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Chunav Result 2025) के नतीजे आज राज्य की राजनीति की दिशा तय करेंगे। इस बार मुकाबला सिर्फ सीटों का नहीं, बल्कि साख और भविष्य का भी है। कुल 28 मंत्रियों की किस्मत आज मतगणना के साथ तय होने जा रही है। इनमें भाजपा के 16 और जदयू के 12 मंत्री शामिल हैं। सत्ता में होने के कारण इन मंत्रियों पर जीत का दबाव दोगुना है, क्योंकि हार की स्थिति में न सिर्फ पद बल्कि राजनीतिक विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लग सकता है।
भाजपा और जदयू दोनों के लिए ‘अग्निपरीक्षा’
भाजपा के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा से लेकर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे, उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा और गन्ना उद्योग मंत्री कृष्णनंदन पासवान तक—हर नेता ने अपनी सीट को ‘सुरक्षित क्षेत्र’ बनाने में पूरी ताकत झोंक दी है। दूसरी ओर, जदयू के वरिष्ठ मंत्री विजय कुमार चौधरी, श्रवण कुमार और लेशी सिंह जैसे चेहरे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साख से भी जुड़े हुए हैं। अगर इन दिग्गजों को झटका लगता है, तो इसका असर सीधे सरकार की स्थिरता और जदयू की राजनीतिक हैसियत पर पड़ सकता है।
14 पूर्व सांसदों का भविष्य भी दांव पर
मंत्रियों के साथ-साथ इस बार चुनावी अखाड़े में 14 पूर्व सांसदों की किस्मत भी आज खुलने वाली है। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव (दानापुर), सुनील कुमार पिंटू (सीतामढ़ी), वीणा देवी (मोकामा), जयप्रकाश नारायण यादव (झाझा) और सरफराज आलम (अररिया) जैसे नाम प्रमुख हैं। इन दिग्गजों के लिए यह चुनाव राजनीतिक पुनर्स्थापना या अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है।
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राजनीतिक परिवारों की सक्रियता और उत्तराधिकार की परीक्षा
इस चुनाव में कई मंत्रियों के परिवार भी मैदान में हैं। जल संसाधन मंत्री संतोष सुमन ने भले चुनाव न लड़ा हो, लेकिन उनकी पत्नी और सास मैदान में हैं। इसी तरह, संतोष कुमार सिंह के भाई आलोक सिंह भी मुकाबले में हैं। बिहार की पारंपरिक राजनीति में यह पारिवारिक प्रभाव फिर एक बार चर्चा में है—जहां सत्ता सिर्फ व्यक्ति नहीं बल्कि परिवारों की विरासत बन चुकी है।
बड़े चेहरे, हॉट सीटें और जनता की नजरें
तारापुर, लखीसराय, बांकीपुर, गया शहर और सरायरंजन जैसी सीटें आज पूरे राज्य की निगाहों में हैं। दरभंगा, नालंदा और सुपौल जैसे जिलों में भी हाई-वोल्टेज मुकाबले हैं। उपमुख्यमंत्रियों से लेकर युवा मंत्रियों तक, सभी के लिए यह परीक्षा राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेगी।
कौन होगा विजेता, किसकी गिरेगी साख?
राज्य की सियासत में यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि राजनीतिक समीकरणों के पुनर्गठन का भी संकेत है। अगर भाजपा अपने अधिकांश मंत्रियों को जीताने में सफल होती है, तो यह केंद्रीय नेतृत्व के लिए बड़ी राहत होगी। वहीं, जदयू के लिए यह चुनाव तय करेगा कि नीतीश कुमार की पकड़ बिहार की राजनीति में कितनी मज़बूत बची है।






















