बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2025) के नतीजों ने पूरे राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को नई दिशा दे दी है। 202 सीटों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने जिस ऐतिहासिक बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है, उसने न केवल महागठबंधन को भारी झटका दिया है, बल्कि वामपंथी दलों की चुनावी जमीन को भी बेहद कमजोर कर दिया है। NDA की यह जीत कई मायनों में 2010 जैसे एकतरफा जनादेश की छवि पेश करती है, जिसने चुनावी चर्चाओं को नई बहसों की ओर मोड़ दिया है।
वामदलों, खासकर भाकपा (माले) के लिए यह परिणाम आत्ममंथन और रणनीतिक पुनर्विचार का विषय बन गया है। पार्टी महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने चुनाव परिणामों को “पूरी तरह स्वाभाविक नहीं” बताते हुए गंभीर सवाल उठाए और कहा कि यह जनादेश कई संदेहों के घेरे में है। उन्होंने आरोप लगाया कि मतदान से ठीक पहले सरकार द्वारा 30 हजार करोड़ रुपये की राशि बड़ी संख्या में लाभार्थियों तक पहुंचाने से चुनावी नैतिकता पर गहरा आघात हुआ और आचार संहिता की मूल भावना को नुकसान पहुंचा।
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बिहार में इस बार वामदलों का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा। भाकपा (माले) 20 सीटों पर लड़कर केवल दो—पालीगंज और काराकाट—ही बचा पाई। CPM को भी सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। INDIA गठबंधन के प्रचार में वामदलों को प्रमुख भूमिका में दिखाया गया था, लेकिन नतीजों ने गुब्बारे की तरह सारी हवा निकाल दी। कई सीटों पर भाकपा (माले) बेहद मामूली अंतर से हार गई—अगिआंव में सिर्फ 95 वोटों से, जबकि बलरामपुर, डुमरांव और ज़ीरादेई जैसी सीटों पर हार का अंतर 3,000 से भी कम रहा। दीपांकर भट्टाचार्य ने स्वीकारा कि पार्टी को मिले वोटों ने संघर्ष की उम्मीद जिंदा रखी है और लोकतंत्र एवं संविधान की रक्षा का आंदोलन जारी रहेगा।
दूसरी ओर, राजद ने चुनाव प्रक्रिया पर सीधे तौर पर उंगली उठाई। राजद प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने नतीजों को “मशीनरी मैनेजमेंट का परिणाम” बताते हुए कहा कि यह जनादेश किसी सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की देन नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि “यहां EVM मैनेजमेंट की सुनामी चली है जिसने बिहार के लोकतंत्र को बहा दिया।” राजद की ओर से यह भी कहा गया कि जिन दलों की चुनावी जमीनी उपस्थिति नगण्य थी, वे आश्चर्यजनक तरीके से शीर्ष पर पहुंच गए, जबकि किसान, मजदूर और बेरोजगार युवाओं की उम्मीदें फिर अधर में अटक गईं।
राजद ने बिहार से बाहर पलायन कर रहे करीब 2 करोड़ 90 लाख युवाओं के संदर्भ में कहा कि उनकी आकांक्षाएं तब तक पूरी नहीं होंगी जब तक चुनावी मशीनरी में पारदर्शिता नहीं आती। उनका कहना है कि जनता भले जनादेश को स्वीकार करे, पर यह भी समझ रही है कि नतीजों में सत्ता पक्ष की मशीनरी की भूमिका कितनी गहरी थी।






















