Bihar Congress Defeat: बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की हालत ऐसी है कि नेतृत्व से लेकर जिला इकाई तक हर कोई जवाब तलाश रहा है। दिल्ली से लेकर पटना तक पार्टी लगातार समीक्षा बैठकों में जुटी है, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने अपनी हार का ‘बकरा’ तय कर लिया है। सवाल यह है कि क्या इस एक कारण को पकड़ लेना कांग्रेस को पुनर्जीवित कर पाएगा या यह सिर्फ एक राजनीतिक सांत्वना भर है?
राजेश राम, जो हार की समीक्षा बैठक में शामिल थे, ने मीडिया से बातचीत में सीधे तौर पर 10,000 वाली सरकारी योजना को हार का सबसे बड़ा कारण बताकर ठीकरा वहीं फोड़ दिया। उनका कहना था कि चुनाव आयोग ने किसी स्तर पर हस्तक्षेप नहीं किया, सरकार लगातार खातों में पैसे भेजती रही और स्कीम से जुड़े कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं को प्रभावी ढंग से साध लिया। जिला अध्यक्षों का भी आम मत यही रहा कि कांग्रेस की हार जनता से कम, सिस्टम से ज्यादा हुई है।
राजेश राम का यह बयान कांग्रेस के भीतर चल रही बेचैनी और निराशा का संकेत देता है, लेकिन इससे यह भी साफ होता है कि पार्टी अपने भीतर की कमियों पर खुलकर बात करने से अभी भी बच रही है। कांग्रेस 61 सीटों पर लड़कर केवल छह सीटों पर सिमट गई, यह सिर्फ सरकारी योजनाओं के प्रभाव का नतीजा नहीं कहा जा सकता। महागठबंधन के भीतर समन्वय की भारी कमी, RJD-कांग्रेस के बीच अविश्वास और रणनीतिक असमंजस ने भी कांग्रेस की जमीन और कमजोर कर दी।
राजेश राम ने भी स्वीकार किया कि चुनाव के दौरान कोऑर्डिनेशन की कमी थी, समय कम था और योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सका। यह भी सच है कि बिहार कांग्रेस में संगठनात्मक जड़ता लंबे समय से चली आ रही है। राज्य में पार्टी के बड़े नेता अपनी सीट बचा नहीं पाए और कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट चुका है। ऐसे माहौल में ‘हार का बकरा’ ढूंढना आसान है, लेकिन समाधान ढूंढना कठिन।
सच यह है कि कांग्रेस को महागठबंधन के भीतर अपनी भूमिका स्पष्ट करनी होगी। क्या पार्टी RJD के साए में सिमटी रहेगी, या अपने स्वतंत्र जनाधार की संघर्षशील राजनीति वापस हासिल करेगी? बिहार की राजनीति तेजी से बदल रही है और ऐसे समय में कांग्रेस की गिरती पकड़ एक गंभीर संकेत है।
अब पूरा राजनीतिक माहौल इस बात पर टिका है कि कांग्रेस यहां से कैसे उठेगी। क्या वह संगठन पुनर्गठन, नए चेहरों और स्पष्ट राजनीतिक लाइन के साथ अपनी खोई जमीन वापस ले पाएगी? या यह हार पार्टी को और अधिक हाशिए की ओर धकेल देगी? बिहार कांग्रेस के भविष्य का फैसला आने वाले महीनों में उसके कदमों से तय होगा- समीक्षा बैठकों से नहीं, बल्कि जमीन पर उतरकर किए गए कामों से।






















