लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi Lok Sabha Speech) ने मंगलवार को सदन में एक ऐसा भाषण दिया जिसने राष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी। महात्मा गांधी की हत्या से लेकर भारत की संस्थागत संरचना पर प्रभाव तक, राहुल गांधी ने जिस तरह से अपनी बात रखी, उसने संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया। उनके भाषण के केंद्र में संघ, समानता का विचार और भारत के विविध समाज की बुनावट थी, जिसे उन्होंने ‘वोट से बुना हुआ कपड़ा’ बताया।
राहुल गांधी ने सबसे पहले 30 जनवरी 1948 की उस ऐतिहासिक घटना का जिक्र किया, जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। राहुल ने दावा किया कि यह सिर्फ़ एक हत्या नहीं थी, बल्कि एक प्रोजेक्ट की शुरुआत थी, जिसका उद्देश्य गांधी जी के विचारों की जड़ पर वार करना था। गांधीवाद और RSS के वैचारिक मतभेदों को रेखांकित करते हुए राहुल ने कहा कि गांधी की हत्या के बाद “अगला कदम भारत के संस्थागत ढांचे पर कब्ज़ा करना था।” उनके इस बयान ने सदन में मौजूद सत्ता पक्ष के सांसदों में तीखी प्रतिक्रिया पैदा की, जबकि विपक्षी बेंचों ने मेज थपथपाकर समर्थन जताया।
राहुल गांधी ने आगे बढ़ते हुए बराबरी के विचार को लेकर RSS पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा संघ है जिसमें हर व्यक्ति, हर धर्म, हर भाषा और हर समुदाय बराबर है, लेकिन यह सोच RSS के दोस्तों को परेशान करती है। राहुल के अनुसार, RSS हायरार्की यानी पदानुक्रम में विश्वास करता है, जबकि भारत की आत्मा बराबरी के सिद्धांत से संचालित होती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह विचारधारा भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए चुनौती बनती जा रही है।
राहुल गांधी ने अपने भाषण के एक बड़े हिस्से में खादी, कपड़ों की विविधता और भारत के सामाजिक ढांचे को एक रूपक के रूप में पेश किया। उन्होंने कहा कि खादी सिर्फ़ कपड़ा नहीं है, बल्कि यह भारत की सामूहिक शक्ति और भावना का प्रतीक है। हिमाचली टोपी से लेकर असमिया गमचा, बनारसी साड़ी से कांचीपुरम सिल्क और नागा जैकेट तक।
उन्होंने कहा कि जैसे कपड़े के धागे अलग-अलग होते हुए भी एक साथ आकर सुरक्षा, ऊष्मा और पहचान देते हैं, उसी तरह भारत भी 1.4 अरब लोगों की विविधता से बना एक ताना-बाना है। इस विविधता को जोड़ने वाला सबसे महत्वपूर्ण धागा ‘वोट’ है। राहुल ने जोर देकर कहा कि लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा से लेकर पंचायत तक भारत का पूरा लोकतांत्रिक ढांचा वोट से ही अस्तित्व में है।

















