बिहार के मुंगेर जिले से नक्सलवाद के खिलाफ निर्णायक मोड़ की तस्वीर सामने आई है। खड़गपुर हिल्स जैसे कभी नक्सली गतिविधियों के गढ़ रहे इलाके में तीन इनामी नक्सलियों का सशस्त्र आत्मसमर्पण (Munger Naxal Surrender) केवल एक प्रशासनिक सफलता नहीं, बल्कि उस रणनीति की जीत है जिसमें सुरक्षा, विकास और विश्वास को एक साथ आगे बढ़ाया गया। बिहार के डीजीपी विनय कुमार और एडीजी लॉ एंड ऑर्डर कुंदन कृष्णन की मौजूदगी में हुए इस आत्मसमर्पण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में वामपंथी उग्रवाद अब अपने अंतिम चरण में है।

आत्मसमर्पण करने वालों में 23 और 24 नक्सली मामलों में वांछित जोनल कमांडर नारायण कोड़ा और बहादुर कोड़ा जैसे बड़े नाम शामिल हैं, जिन पर तीन-तीन लाख रुपये का इनाम घोषित था। इनके साथ दस्ता सदस्य बिनोद कोड़ा ने भी मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया। इन नक्सलियों ने पुलिस के समक्ष इंसास और एसएलआर राइफल समेत भारी मात्रा में हथियार, सैकड़ों कारतूस और वॉकी-टॉकी जमा कर यह संकेत दिया कि अब हिंसा के रास्ते को वे पूरी तरह त्याग चुके हैं।
यह आत्मसमर्पण ऐसे समय हुआ है, जब बिहार सरकार की आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास नीति लगातार जमीन पर असर दिखा रही है। सुरक्षा बलों के दबाव, लगातार अभियानों और स्थानीय समाज के सहयोग ने नक्सलियों के लिए वैचारिक और भौगोलिक दोनों तरह की जगह को सीमित किया है। कार्यक्रम में पहले ही आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों के परिजनों की मौजूदगी ने यह संदेश भी दिया कि सरकार केवल हथियार छुड़वाने तक सीमित नहीं है, बल्कि परिवारों को सम्मान और भविष्य की सुरक्षा भी दे रही है।

डीजीपी विनय कुमार ने इस अवसर पर कहा कि 2005 के बाद से बिहार ने नक्सल प्रभावित जिलों को चरणबद्ध तरीके से मुक्त कराया है। पटना, जहानाबाद, अरवल जैसे जिले पूरी तरह नक्सलवाद से बाहर आ चुके हैं और जो 23 जिले कभी अति प्रभावित थे, वे अब शून्य की स्थिति में हैं। वर्तमान में केवल चार जिले ‘लीगेसी एंड थ्रस्ट’ श्रेणी में रखे गए हैं, जहां सतर्क निगरानी जारी है, लेकिन सक्रिय उग्रवाद नहीं है।
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि सुरक्षा के साथ-साथ विकास परियोजनाओं ने इस बदलाव की नींव रखी है। सड़कों, राष्ट्रीय राजमार्गों, एक्सप्रेसवे, स्कूल-कॉलेज और स्किल डेवलपमेंट जैसी योजनाओं ने उन युवाओं को विकल्प दिए, जो कभी उग्रवाद की ओर आकर्षित हुए थे। पंचायती राज संस्थाओं से युवाओं की भागीदारी ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भरोसा मजबूत किया है।
खड़गपुर हिल्स और भीमबांध क्षेत्र का उदाहरण इस परिवर्तन को सबसे स्पष्ट रूप से दिखाता है। कभी जहां नक्सलियों की केंद्रीय बैठकें होती थीं और गंभीर घटनाएं सामने आती थीं, वही इलाका अब लगभग पूरी तरह साफ हो चुका है। प्रशासन का अगला लक्ष्य यहां पर्यटन और समग्र विकास को इस स्तर तक पहुंचाना है कि लोगों को सरकार और व्यवस्था की मजबूत मौजूदगी महसूस हो। योजनाओं का संतृप्तिकरण इस सोच के साथ किया जा रहा है कि किसी भी तरह का वैक्यूम दोबारा न पनप सके।




















