देश में पहले से ही हनुमान चालीसा, मस्जिद में लाउडस्पीकर और हिजाब विवाद को लेकर चर्चा गर्म है। इस बीच समान नागरिक संहिता को लेकर भी बहस तेज हो गई है। ऐसी अटकलें हैं कि केंद्र सरकार जल्द ही इस मसले पर कोई बड़ा फैसला ले सकती है। ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर अलग-अलग राय सामने आ रही है। एक तबका इसे देश की तरक्की के लिए बेहतर कदम बता रहा है तो दूसरा तबका इसे संविधान विरोधी कह रहा है।
पटना: देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू करने की तैयारी चल रही है! अगर पर्दे के पीछे की चल रही तैयारियों पर गौर करेंगे तो आपको साफ लग जाएगा कि ऐसा कुछ होने जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले दिनों झारखंड में थे। वहां पर उन्होंने ऐसा बयान दिया, जिस पर सियासी पारा अब बढ़ता ही जा रहा है।
370 और 35ए को हटाने का काम
अमित शाह के शब्दों में, कश्मीर से धारा 370 और 35ए को हटाने का काम भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किया। ट्रिपल तलाक के मुद्दे का हल निकाला जा चुका है। राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। काशी सज चुका है। अब बारी देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की है। मतलब साफ है, आने वाले समय में देश में समान नागरिक संहिता पर चर्चा होगी। जोरदार होगी। वोट बंटेंगे और फायदा किसको होगा, यह हर कोई जानता और समझता है।
समान नागरिक संहिता पर चल रही बहस के बीच एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को सुनना आपको वोटों के बंटवारे के आखिरी बिंदु तक ले जाता है। वे कहते हैं कि संविधान की धारा 44 के तहत कॉमन सिविल कोड की बात हो रही है। लेकिन, संविधान की धारा 26ए लोगों को अपने धर्म और उसके सिद्धांतों का पालन करने की मौलिक आजादी देता है। अगर समान नागरिक संहिता लागू होगी तो देश के सभी नागरिकों को किस कानून के दायरे में लाया जाएगा। नागरिकों के लिए कानून की बात करें तो हिंदू मैरिज एंड प्रोपर्टी लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ, इसाई पर्सनल लॉ, पारसी पर्सनल लॉ जैसे कानून हैं, जो बहुविविधता वाले इस देश में लोगों को व्यैक्तिक स्वतंत्रता देते हैं। ओवैसी इसे मुसलमानों को दबाए जाने और उनके अधिकारों को सीमित करने के रूप में दे रहे हैं।
हकीकत है क्या?
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और असम में जिस प्रकार से समान नागरिक संहिता पर बहस शुरू हुई है, उसका असर दूर तक जाएगा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना का नंबर आएगा। मतलब, समान नागरिक संहिता की बहस अभी बढ़ेगी। उत्तराखंड ने तो समान नागरिक संहिता के लिए कमेटी बना दी है। वह प्रदेश के सभी लोगों के लिए एक समान कानून तैयार करने के लिए ड्राफ्ट मसौदा तैयार करेगा। पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव से पहले की गई घोषणा को जमीन पर उतारा है।
असम के सीएम हिमंता विसवा सरमा का बयान तो कुछ अलग ही कहानी कह रहा है। वे कहते हैं कि समान नागरिक संहिता तो हमारा मुद्दा है ही नहीं। यह तो मुस्लिम समुदाय की महिलाओं का मुद्दा है। कौन मुस्लिम समुदाय की महिला चाहेगी कि उसके घर में पति तीन और पत्नियों को लाकर रखे। वे सवाल करते हैं कि क्या मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिलने चाहिए। आप समझ लीजिए, मुद्दे को लेकर भाजपा किस स्तर पर अपनी बात रख रही है। असर पड़ना तय है।
केशव मौर्य का आया है बयान
यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है कि हर कोई समान नागरिक संहिता की मांग कर रहा है। इसका स्वागत कर रहा है। लखनऊ में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार भी इस दिशा में विचार कर रही है। हमलोग इसके समर्थन में हैं। यह उत्तर प्रदेश और देश के लोगों के लिए जरूरी भी है। डेप्युटी सीएम ने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख वादों में से एक है। डेप्युटी सीएम के इस बयान पर राजनीति गरमानी तय है। ऐसे में डिप्टी सीएम के बयान से साफ लग रहा है कि यूपी में भी इस दिशा में काम शुरू हो रहा है या होने वाला है।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है- देश के हर नागरिक के लिए एक समान कानून बने। फिर भले ही वह किसी भी धर्म या जाति से नाता क्यों न रखता हो। देश में फिलहाल अलग-अलग मजहबों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। समान नागरिक संहिता का मतलब हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता लाना है। इसके तहत हर धर्म के कानूनों में सुधार और एकरूपता लाने पर काम होगा। यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।
दो राज्यों में 1961 से लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड
देश के दो राज्यों गोवा और पुडुचेरी में समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा में साल 1961 से समान नागरिक संहिता लागू है जिसमें समय के साथ बदलाव भी किए गए। 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में पुर्तगाल सिविल कोड 1867 को लागू करने का प्रावधान किया, जिसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई। इस कानून के तहत शादी, तलाक, दहेज, उत्तराधिकार के मामलों में हिंदू, मुसलमान और ईसाइयों पर एक ही कानून लागू होता है।
तो फिर विरोध की वजह क्या
समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का तर्क है कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है। इस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बड़ी आपत्ति रही है। उनका कहना है कि अगर सबके लिए समान कानून लागू कर दिया गया तो उनके अधिकारों का हनन होगा। मुसलमानों को तीन शादियां करने का अधिकार नहीं रहेगा। उन्हें अपनी बीवी को तलाक देने के लिए कानून के जरिए जाना होगा, वह अपनी शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं कर सकेंगे।