जब इरादा मजबूत और हौसला बुलंद हो तो जिंदगी आसान हो जाती है, ये लाइन संदीप के जीवन पर बिल्कुल फिट बैठता है वह संदीप जिसे कलयुग का श्रवण भी कहा जा सकता है, आज के दौर में जहां बाप बेटे का नहीं होता है, बेटा भाई का नहीं होता है ऐसे समय में संदीप कई परिवारों के लिए एक मिसाल है। 28 साल की उम्र में संदीप हर दिन अपने रिक्शे के पेंडल पर दौड़ लगाता है, वह संदीप जो खुद ठीक से चल भी नहीं सकता अपने मां-बाप का जीवन चलाता है, खुद शरीर से लाचार और दिव्यांग होते हुए भी अपने बीमार मां बाप का ख्याल रखता है।
संदीप का सपना माँ बाप को रखना है खुश
किसी ने ठीक ही कहा है इस कलयुग में बेटा नालायक हो जाए। उससे अच्छा विकलांग ही हो, संदीप ही हो, क्योंकि बूढ़ी मां बाप के लिए औलाद का फर्ज तो यही श्रवण कुमार निभा रहा है। संदीप का बस यही सपना है कि वह अपने मां-बाप को खुश रखें और उनके लिए कमाए। छोटी सी उम्र में इन्होंने कमाना शुरू कर दिया, जो लड़का ठीक से बोल भी नहीं पाता, जिसने पढ़ाई के नाम पर केवल आठवीं कक्षा पास की है। लेकिन इसके मन में कई आस है, जैसे जीतने की आस,अपने बेटे होने का कर्तव्य निभाने की आस, मां-बाप को खुश रखने की आस।
रिक्शे पर बैठने वाले लोग उसे कभी पागल कह कर बुलाते हैं तो कभी विकलांग
हर सुबह संदीप अपने रिक्शे को लेकर निकल पड़ता है पैसे कमाने की आस में, लेकिन जनाब यह तो जिंदगी है। इतनी आसानी से किसी को भी कहा खुश रहने देती। संदीप सुबह रिक्शा लेकर तो निकलता है लेकिन हर दिन उससे नई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि संदीप विकलांग है, ठीक से चल भी नहीं पाता, ठीक से बोल भी नहीं पाता। रिक्शे पर बैठने वाले लोग उसे कभी पागल कह कर बुलाते हैं तो कभी विकलांग समझते हैं। कोई भी व्यक्ति संदीप के रिक्शे पर बैठना भी नहीं चाहता, लेकिन इसके बावजूद संदीप हौसला नहीं हारता और संदीप के इसी हौसले की वजह है कि आज उसका परिवार भी उस पर गर्व करता है।
संदीप है प्रेरणा का उदाहरण
संदीप के मां-बाप का कहना है कि वह उनका श्रवण कुमार है, बुढ़ापे का सहारा है, उन्हें गर्व होता है कि संदीप उनका पुत्र है। जन्म लेते ही सब कुछ मिल जाने वाले उन औलादों को क्या पता चलेगा ,जो इस बुढ़ापे के उम्र में अपने मतलब और पैसे के लिए अपने मां-बाप को छोड़ देते हैं। ऐसे लोगों के लिए संदीप एक प्रेरणा के उदाहरण है। संदीप को देखकर आजकल के लोगों को यह प्रेरणा लेनी चाहिए। अगर संदीप जैसा गरीब लाचार और दिव्यांग व्यक्ति अपने मां-बाप के लिए श्रवण कुमार बन सकता है तो हम और आप क्यों नहीं।