[ Team insider] विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर देश दुनिया में पर्यावरण असंतुलन और प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण पर चिंता जाहिर की जा रही है। सोशल मीडिया पर लोग अपने अपने स्तर से समस्याओं को साझा कर रहे हैं। जहां तक झारखंड की बात है यहां अवैध माइनिंग, गायब होते पहाड़ और कटते हुए जंगलों पर चिंता जाहिर की जा रही है। गुम होते पहाड़ों और अवैध खनन को लेकर राजनीतिक दलों में आरोप प्रत्यारोप का मामला अदालतों में भी जा पहुंचा है। मगर अभी जो शेष है उसकी चिंता सरकार को है ऐसा दिखता नहीं है। प्राकृतिक सौंदर्य का लबादा ओढे़ छोटा झारखंड की राजधानी रांची और करीबी इलाकों पर ही सरकार ध्यान दे तो पर्यटन सरकार के साथ स्थानीय लोगों के आय का बड़ा जरिया बन सकता है। इसके प्राकृतिक सौंदर्य को देखते हुए ही रांची के पतरातू में फिल्म सिटी के निर्माण की बात चली थी। मगर बात आगे नहीं बढ़ी।
अगले दो वर्ष मं संपूर्ण भूमि का हस्तांतरण का लक्ष्य
बीते अप्रैल माह में ही यूपी के सीएमओ ने ट्वीट कर कहा कि ”देश और दुनिया की इंफोटेनमेंट इंडस्ट्री उत्तर प्रदेश की ‘फिल्म सिटी’ की प्रतीक्षा कर रही है। छह माह में विकासकर्ता का चयन करते हुए अगले दो वर्ष मं संपूर्ण भूमि का हस्तांतरण का लक्ष्य रखें। फिल्म सिटी रोजगार सृजन का बड़ा माध्यम बनेगी।” योगी आदित्य नाथ ने न सिर्फ सपना देखा बल्कि उसे साकार करने में जुटे हैं। वहीं झारखंड में तमाम संभावनाओं के बावजूद सरकार सोई हुई है।
फिल्म विकास निगम भी ठोस भूमिका नहीं अदा कर पा रहा
अर्जुन मुंडा जब मुख्यमंत्री थे यहां भी फिल्म सिटी का सपना देखा गया था। कुछ पहल भी हुई। रघुवर दास मुख्यमंत्री बने तो फिल्म नीति भी बनी। राजधानी रांची के करीब शूटिंग के प्लाट और सुविधाओं को देखते हुए बनी मगर बात योजनाओं तक सिमट कर रह गई। फिल्म विकास निगम भी ठोस भूमिका नहीं अदा कर पा रहा, इसके अधीन की कमेटियां भी सिमटकर रह गईं।
झारखण्ड का है अनुकूल मौसम
कुछ बड़े कलाकारों को यहां ब्रांड एंबेस्डर के रूप में जोड़ा भी गया मगर वे भी सब्सिडी तक सिमट कर रह गये। इसे किसी मसीहा की जरूरत है जो फिल्म इंडस्ट्रीज के सपने को जमीन पर उतार सके। झारखंड को भी किसी योगी आदित्यनाथ की जरूरत है। यहां आउटडोर शूटिंग के लिए एक से एक प्लाट हैं, अच्छी सड़कें, जंगल, पहाड़, नदी, झरने, गुफाएं, धार्मिक स्थल, चंद विरासती इमारतें, खंडहर भी। अनुकूल मौसम भी। मौलिकता देने वाले एक से एक पात्र और कहानी के दिलचस्प प्लॉट। तकनीशियन और छोटे बड़े कलाकार भी हैं जिनहें अवसर की तलाश है, एक्सपोजर की दरकार है। इससे झारखंड के पर्यटन स्थलों की ब्रांडिंग होगी, सरकार को राजस्व मिलेगा तो रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
झारखण्ड में है कई खुबसूरत स्पॉट
रांची और इसके सटे हुए इलाकों की ही बात करें तो पतरातू की तरह कई और जगह हैं जो नीति बनाने वालों की नजर से छुपे हुए हैं। पतरातू घाटी के समानांतर ठाकुर गांव उमेडंडा से आगे हेंदेगीर घाटी की पतरातू की तरह समानांतर घाटी है। उससे कहीं ज्यादा तीखे मोड़, ज्यादा घने जंगल। रांची से सिल्ली जाने के रास्ते में जोन्हा-गोला रोड की सर्पीली सड़कें और पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरे अति घने जंगल पतरातू घाटी से कम खूबसूरत नजारा नहीं पेश करते। इसी तरह टाटीसिल्वे से राहे जाने के क्रम में राजाडेरा घाटी और पहाड़ों की श्रृंखला, घने जंगल और तीखे मोड़, तीखी ढलान और चढ़ाई वाले रास्ते हैं। रांची और खूंटी के मुहाने पर दशम फॉल और उसका एक्सटेंशन रिमिक्स फॉल का इलाका तीखी सड़कों, जंगल, पहाड़, झरना और समुद्री किनारे की तरह दूर तक फैले रेत से पटा हुआ है।
झारखण्ड में हो चुके है कई फिल्मो के निर्माण
ऐसा नहीं है कि यहां फिल्मों का निर्माण नहीं हुआ है। कोंगणा सेन की ‘अ डेथ इन द गंज’, अनुपम खेर की ‘रांची डायरी’, ऋषि प्रकाश मिश्र की ‘अजब सिंह की गजब कहानी’, बेगम जान, नाचे नागिन गली-गली, रोफा, पंचलाइट अलग कारणों से चर्चा में रही। रघुवर शासन के दौरान फिल्म सब्सिडी और विकास के लिए 15 करोड़ रुपये जारी हुए थे। मगर प्रभावशाली लोग ही लाभान्वित हुए। चार सालों के दौरान कोई दो सौ से अधिक फिल्मों के प्रस्ताव आये मगर महज नौ फिल्म ही उपकृत हुए। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे महेंद्र सिंह धौनी पर बायोपिक, प्रकाश झा की परीक्षा, लोहरदगा, आक्रांत, फुलमनिया, बेलुरिया, गिलुआ, जुगनी, झारखंड कर छैला, गंवार मचयलस हाहाकार, करमा …. यहां के फिल्मों की लंबी फेहरिश्त है। किसी को बड़ा मुकाम मिला तो कोई सिमटकर रह गया।