राजभवन और सरकार के संबंधों में खटास बढ़ती जा रही है। रांची में उपद्रव के मामले में सरकार और राजभवन के बीच सीधा टकराव की स्थिति है। राज्यपाल ने भाजपा से निलंबित नेत्री नुपुर शर्मा के बयान के बाद 10 जून को रांची में उपद्रव में शामिल उपद्रवियों की होर्डिंग लगाने का आदेश दिया तो गृह सचिव ने कहा यह विधिसम्मत नहीं है। ऐसा नहीं है कि राजभवन और सरकार के बीच विवाद नया है। मगर इस बार सीधी टकराहट है। राज्य सरकार द्वारा विधानसभा से पास चार विधेयकों को तकनीकी रूप से त्रुटिपूर्ण बताकर वापस कर दिया। उसमें मॉब लिंचिंग निषेध, ट्राइबल यूनिवर्सिटी, झारखंड वित्त विधेयक और कृषि उपज वं विपणन विधेयक शामिल हैं। मॉब लिंचिंग निषेध और ट्राइबल यूनिवर्सिटी विधेयक तो एजेंडे से जुड़ा था।
राज्यपाल के स्टैंड से सरकार की हो रही फजीहत
राज्यपाल रमेश बैस के आते ही सरकार के प्रति तिरछा रूख जाहिर हो गया था जब उन्होंने, ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल में सदस्यों के मनोनयन की भूमिका से राज्यपाल को किनारे करने संबंधी नियमावली पर आपत्ति जता दी थी। हालांकि अभी तक उसका समाधान नहीं निकला है। जो विधेयक लौटाये गये उसे विधानसभा से पुन: पारित कराने की नौबत है। विवि प्रबंधन, उत्पाद नीति, झारखंड लोक सेवा आयोग के परिणाम से जुड़े मसलों पर भी राज्यपाल के स्टैंड से सरकार की फजीहत होती रही। मगर उन मोर्चों पर सरकार को अपनी कमियों को देखते हुए बोलने का अवसर नहीं मिला।
दो दिनों के भीतर एसएसपी से भी मांगा जवाब
रांची उपद्रव के मोर्चे पर तो गृह सचिव ने राज्यपाल के आदेश को विधिसम्मत नहीं होना बता दिया तो जनसंपर्क विभाग ने गृह सचिव के आदेश पर जारी विज्ञप्ति में उसे संविधान का उल्लंघन यानी असंवैधानिक करार दिया। यह बात अलग है कि उन्होंने सीधा राज्यपाल को जवाब देने के बदले रांची के एसएसपी को पत्र लिखकर यह बात कही। तेवर यह कि दो दिनों के भीतर एसएसपी से जवाब भी मांगा। हालांकि राज्यपाल का आदेश और गृह सचिव का आदेश दोनों सार्वजनिक है इसलिए मामला फाइलों में रहने के बदले सड़क पर आ गया है। लोगों के सामने आ गया है। अब देखने की बात यह है कि राजभवन राज्यपाल के आदेश को गलत बताने वाले गृह सचिव के आदेश का क्या काउंटर करता है।
रांची में उग्र प्रदर्शन कर उपद्रव मचाया था
बता दें कि नुपुर शर्मा के बयान का विरोध जाते हुए मुस्लिमों ने रांची में उग्र प्रदर्शन कर उपद्रव मचाया तो राज्यपाल रमेश बैस ने पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा, रांची के एसएसपी और डीसी को राजभवन बुलाकर उनसे कई सवाल किये और उपद्रवियों की तस्वीर वाली होर्डिंग प्रमुख चौराहों पर लगाने का निर्देश दिया। 14 जून को पुलिस ने रांची में उपद्रवियों का पोस्टर लगाना शुरू ही किया था कि सत्ताधारी झामुमो के विरोध के कारण घंटे भर के भीतर ही उसे उतार लिया। इस दलील के साथ कि इसमें कुछ संशोधन किया जाना है।
मगर अगले दिन 15 जून को ही गृह सचिव राजीव अरुण एक्का जो मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव भी हैं रांची के एसएसपी को पत्र लिखकर कहा ”… 10 जून को रांची में हुई घटनाओं में नाजायज मजमों में कथित रूप से शामिल व्यक्तियों और हिंसा में कथित रूप से शामिल व्यक्तियों के फोटो सहित पोस्टर 14 जून को रांची पुलिस द्वारा लगाये गये। जिसमें कई व्यक्तियों के नाम एवं अन्य विवरण भी दिये गए। यह विधिसम्मत नहीं है और माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पीआईएल में 9 मार्च 2020 को पारित न्यायादेश के विरुद्ध है। पत्र प्राप्ति के दो दिनों के भीतर उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है।”
सड़क किनारे लगे बैनरों को तत्काल हटाने का निर्देश दिया था
सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने गृह सचिव के आदेश का हवाला देते हुए लिखा है कि उपरोक्त आदेश में अदालत ने सड़क किनारे लगे बैनरों को तत्काल हटाने का निर्देश दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार को यह भी निर्देश दिया था कि बिना कानूनी अधिकार के व्यक्तियों के व्यक्तिगत जानकारी वाले बैनर सड़क किनारे न लगाएं। यह मामला और कुछ नहीं बल्कि लोगों की निजता में क अनुचित हस्तक्षेप है। इसलिए, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। सूत्रों के अनुसार राजभवन गृह सचिव के इस पत्र के बाद विचलित है और विधि विशेषों से राय लेने जा रहा है।