बिहार विधानसभा में बहुमत के लिए चाहिए 122 विधायक और सत्ता पक्ष के गठबंधन के पास 127 MLA हैं। बहुमत तो स्पष्ट है लेकिन कमोबेश सरकार के लिए निश्चिंत वाला भाव नहीं है। क्योंकि बिहार के राजनीतिक दलों ने अपना पाला मजबूत करने का जो ट्रेंड शुरू किया है, उसमें अस्थिरता हावी हो सकती है। 2020 में 10 नवंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे आए। इसके बाद से अब तक बिहार में वैसे तीन दलों का नामोनिशां मिट चुका है, जिनके पास विधानसभा में कम से कम एक विधायक था। चौथे दल में पांच में से चार विधायक दूसरे दल में जा चुके हैं। ऐसे में अब चर्चा का आलम यही है कि इस कड़ी में पांचवा दल कौन सा होगा?
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JDU ने शुरू किया खेल
243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा के 2020 में हुए चुनाव में लोजपा से राजकुमार सिंह जीते। कई सीटों पर JDU की हार का कारण बनी यह लोजपा की इकलौती सीट थी। मटिहानी विधानसभा सीट से जीते राजकुमार सिंह ज्यादा दिनों तक लोजपा में टिके नहीं। LJP को NDA का हिस्सा बताते हुए वे सरकार के समर्थन में आ गए। लेकिन पार्टी के तत्कालीन मुखिया चिराग पासवान को नीतीश सरकार के खिलाफ थे। इसलिए राजकुमार सिंह ने अपनी इच्छा का सम्मान करते हुए खुद को जदयू में समाहित कर दिया।
BSP का भी वही हाल
उस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी भी एक सीट पर जीती थी। चैनपुर विधानसभा सीट से जीते जमां खान BSP के टिकट पर ही चुनाव लड़े और जीते थे। लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती के प्रति उनकी वफादारी अधिक दिन तक कायम नहीं रही। वे भी सत्ता के शीर्ष पर बैठे JDU के साथ आ मिले। इस तरह LJP की तरह BSP का भी बिहार विधानसभा से सफाया हो गया।
एक कदम आगे निकल गई BJP
जदयू ने जिस खुले दिल से दूसरे दलों को विधायकों को अपने साथ लिया, सहयोगी BJP उससे एक कदम आगे निकली। जदयू ने उन दलों के विधायकों को मिलाया जिन्होंने एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ा था। लेकिन भाजपा ने सहयोगी VIP के तीन विधायकों को मिला कर उसे सत्ता से बाहर ही कर दिया। वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को भाजपा के इस कदम के बाद मंत्रिमंडल से हटना पड़ा और VIP सरकार से बाहर हो गई। इससे भाजपा को बड़ा फायदा यह हुआ कि वो राज्य में सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी बन गई।
RJD ने BJP को पीछे छोड़ा
2020 के चुनाव में RJD सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। राजद के कुल 75 विधायक जीते थे। बाद में बोचहां विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में एक और सीट राजद के खाते में आई। तब RJD के विधायकों की संख्या 76 हो गई। जबकि VIP के तीन विधायकों को मिलाने के बाद भाजपा 77 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। तब राजद ने AIMIM के चार विधायकों को अपने पाले में कर 80 विधायक पूरे किए और सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
अब HAM पर खतरा?
बिहार विधानसभा की मौजूदा स्थिति में खतरा छोटे दलों को है। क्योंकि बड़े दल छोटे दलों को समाप्त कर अपनी संख्या बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। जदयू, भाजपा और राजद सबने यही किया है। ऐसे में सबसे अधिक खतरा हिंदुस्तानी आवाम मोचा पर है। HAM के अभी चार विधायक हैं, जिसमें जीतन राम मांझी भी शामिल हैं। मांझी कई मौकों पर भाजपा के करीब दिखे हैं। राष्ट्रपति उम्मीदवार चयन पर तो मांझी ने खुल कर कहा था कि मोदी है तो मुमकिन है। ऐसे में भाजपा की उनकी नजदीकियां अगर आगे बढ़ गई तो विधानसभा की स्थिति एक बार फिर बदल सकती है।