सत्ता में सेंधमारी राजनीति का पुराना शब्द हो चुका है। इसका सीधा अर्थ माना जाता है कि जिसने सेंधमारी की वो सत्ता में बैठेगा। लेकिन बीजेपी के ऑपरेशन लोटस ने पूरा फॉर्मेट ही बदल दिया। महाराष्ट्र में भाजपा के नए पैंतरे ने राजनीति के नए अध्याय की शुरुआत की है। किसको बिना मांगे क्या मिला, किसके पर कतरे गए, यह सब अलग बात है। लेकिन इस पूरे प्रकरण में जो एक बात निकल कर सामने आई कि ऑपरेशन लोटस का नया फॉर्मेट राजनीतिक परिवारों के युवराजों के लिए खतरे की घंटी है।
समर्थकों को मिली नई राह

महाराष्ट्र हो या बिहार या फिर झारखंड, तीनों राज्यों में एक समानता है। तीनों राज्यों की सबसे बड़ी पार्टियों में एक परिवार ही सत्ता में रहा है। सत्ता हो या विपक्ष, महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार, बिहार में लालू परिवार और झारखंड में सोरेन परिवार ही अपनी पार्टियों की फर्स्ट लाइन में रहे हैं। भाजपा ने ऑपरेशन लोटस के नए फॉर्मेट में इसी परिवारवाद पर चोट की है। अब परिवारवाद का ताज पहने बड़े नेताओं के समर्थक विधायकों को यह भरोसा दिया है कि वे अगर भाजपा के साथ होते हैं तो उन्हें मंत्रीपद या डिप्टी सीएम भर से संतोष नहीं करना पड़ेगा, वे CM भी बन सकते हैं।
तेजस्वी को साधना बड़ी चुनौती

भाजपा की बिहार में रणनीति लालू परिवार के विरोध की रही है। लालू परिवार ही ऐसा कॉमन फैक्टर है, जहां भाजपा और नीतीश एक साथ आते हैं। नीतीश तो लालू के साथ पहले भी थे, बाद में भी हुए। लेकिन भाजपा के लिए लालू परिवार से दोस्ती संभव नहीं है। लेकिन ऑपरेशन लोटस बिहार में चला तो तेजस्वी को झटका लग सकता है। हालांकि तेजस्वी का परफॉर्मेंस ऐसी परिस्थितियों को आसानी से आने नहीं देगा। क्योंकि विपक्ष में होने के बाद भी तेजस्वी की ताकत दूसरे दलों को तोड़ देने की है। AIMIM के चार विधायक अभी ही तेजस्वी के साथ हुए हैं।
‘हेमंत सोरेन के विवादों ने बढ़ाई आशंका’

मौजूदा हालात में झारखंड में सरकार स्थिर दिख रही है। 82 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में हेमंत सोरेन सरकार को 51 विधायकों का समर्थन है। इसमें झामुमो के 30 और कांग्रेस के 18 सदस्यों की भूमिका महत्वपूर्ण है। लेकिन माइंस आवंटन और दूसरे मामलों में हेमंत सोरेन के प्रति आस्था कम हुई है। ऐसे में भाजपा का ऑपरेशन लोटस अगर झारखंड में चला तो झामुमो में ही बगावत हो सकती है। हालांकि अभी उपचुनाव में कांग्रेस के एक उम्मीदवार की जीत ने सरकार को मजबूती दी है।