जनता दल यूनाइटेड में सबकुछ कृपा पर ही चलता है। जिस आदमी की हैसियत 5 हजार भीड़ जुटाने की भी नहीं थी, उसे JDU ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया था। यह कोई और नहीं खुद जदयू के बड़े बड़े नेता कह रहे हैं। इन बयानों का एक मतलब ये है कि JDU जिस परिवारवाद की खिलाफत करता है, वो दूसरे रूप में जदयू में ही फैला हुआ है। जदयू नेताओं के बयान बता रहे हैं कि नीतीश की खिलाफत पाप है। पद चाहे कोई भी हो, सिर्फ उसी को मिलेगा जिसपर नीतीश कुमार की कृपा होगी। यानि नीतीश के नजदीकी ही बमबम रहेंगे। पार्टी में न लोकतंत्र की कोई वैल्यू है और न ही संगठन की।
कल के विरोधी, आज के हितैषी
अशोक चौधरी
जदयू के पूर्व कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष और बिहार सरकार के मंत्री डॉ. अशोक चौधरी ने आरसीपी सिंह के बारे में कहा कि वे CM नीतीश के बिना कुछ नहीं हैं। नीतीश की कृपा से दो बार राज्यसभा गए। बिना CM की कृपा के 5-10 हजार लोग भी नहीं जुटा सकते। अशोक चौधरी यहीं नहीं रुके। उन्होंने आरसीपी सिंह के पॉलिटिकल बैकग्राउंड पर भी सवाल उठाया। कहा कि पहले क्या थे, किस पार्टी में थे? अशोक चौधरी की ये बात तो सही है कि आरसीपी सिंह ने अभी तक दल नहीं बदला है। ये अलग बात है कि 2015 के पहले तक अशोक चौधरी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे और नीतीश कुमार के खिलाफ खुल कर बोलते थे। आठ साल पहले तक नीतीश को पानी पी पी कर कोसने वाले अशोक चौधरी आज, नीतीश के हितैषी हैं।
ललन सिंह
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं ललन सिंह। नीतीश कुमार के पुराने करीबी हैं। आरसीपी सिंह को लेकर उनकी स्थिति भी दूसरे खेमे वाली ही है। आरसीपी सिंह के हटने के बाद ही उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष पद मिला है। आज भी नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेताओं में ललन सिंह का नाम आता है। वैसे तो ललन सिंह आमतौर पर बयानों से परहेज करते हैं। लेकिन एक वक्त था जब झोला उठाकर पूरा बिहार घूम रहे थे। नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। यहां तक कि नीतीश कुमार के पेट में दांत का जुमला भी ललन सिंह ने ही दिया था। कांग्रेस से जाकर जदयू के खिलाफ ही चुनाव भी लड़ चुके हैं।
उपेंद्र कुशवाहा
नीतीश कुमार के पुराने करीबियों में उपेंद्र कुशवाहा का भी नाम आता है। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा का नाम उन नेताओं में भी आता है जो हमेशा नीतीश के करीबी नहीं रहे। आज नीतीश के साथ हैं। 2014 के चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ भाजपा के साथ थे। अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़े थे। जीते भी थे। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार के खिलाफ उपेंद्र कुशवाहा झूम कर लड़े। कोई सीट पा नहीं सके। इसके बाद वापस नीतीश कुमार की पार्टी अपनी पार्टी का विलय कर दिया और जदयू के संसदीय बोर्ड में शामिल हो गए।