झारखंड अपनी विविधताओं के लिए अलग पहचान रखता है। एक से एक प्राकृतिक नजारों से लेकर भांति-भांति के साग, कंद, मशरूम यहां उपलब्ध हैं। हालांकि अभी भी शहरी लोग यहां अनेक उपज के जायके और उसके औषधीय गुणों से वंचित हैं। इन दिनों ग्रामीण बाजार में आप को कहीं-कहीं छोटा बेर के आकार की सब्जी मिल जायेगी। वन भंटा, कुटमा, कुटुंबा के नाम से लोग इसे जानते हैं। बैगन की तरह के झाड़ वाले पौधे में ही यह गुच्छे में फलता है।
कुसुम का फल बेर के आकार का होता है
खूंटी के तोरपा के फ्रांसिस मिंज कहते हैं कि हमलोग इसे सब्जी के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसमें औषधीय गुण भी है। शुगर और कफ से पीड़त के मरीजों के लिए यह फायदेमंद है। बुखार के बाद जब जुबान का जायका चला जाता है, किसी खाने में स्वाद नहीं मिलता तो मरीज को पत के रूप में इसकी सब्जी खिलाते हैं। प्याज, हरी मिर्च, लहसुन के साथ छोटे आकार के आलू और कुटमा को दो-दो टुकड़ा करके सब्जी बनाते हैं।
इसी तरह कुसुम के फल के स्वाद से भी लोग वंचित हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग इसे पसंद करते हैं। कहीं-कहीं हाट बाजार में भी दोने में इसे बेचते हुए दिख जाते हैं। गर्मी की शुरुआत में जब पलाश के पेड़ जंगल के आग की तरह लाल फूल से लद जाते हैं उसी समय कुसम के नये लाल पत्ते भी पलाश का भ्रम पैदा कर सकते हैं। कुसुम का फल बेर के आकार का होता है। अंदर से यह लीची जैसा होता है। खाने में खट्टा-मीठा मिश्रित स्वाद।
पोषक वृक्षों में कुसुम को सर्वोत्तम माना गया है
जनजातीय इलाकों के ग्रामीणों अनुसार इसका फल शुगर, जोड़ों के दर्द में कारगर है, बच्चों के पेट के कीड़े मारने के लिए भी इसका उपयोग करते हैं। प्रोटीन, कैल्शियम, प्रोटीन, फासफोरस, एंटी इन्फ्लामेट्री (कैंसर रोधी तत्व) तत्व भी इसमें पाये जाते हैं। बड़े आकार के होने वाले इसके पेड़ पर लाख के कीड़े भी पाले जाते हैं। लाख पोषक वृक्षों में कुसुम को सर्वोत्तम माना गया है। ग्रामीणों के लिए लाख की वजह से यह ज्यादा उपयोगी है। सैंपिएंडिएसी फैमिली के कुसुम का बॉटेनिकल नाम स्लेयीचेराओलियोसा है।