पूरी दुनिया में आज यानी 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर राजधानी रांची में दो दिवसीय झारखंड जनजातीय महोत्सव-2022 का आयोजन किया जा रहा है। आज 9 अगस्त यानी मंगलवार को राजधानी के मोरहाबादी मैदान में दो दिवसीय इस महोत्सव आरंभ होगा। रांची में आजोयित दो दिवसीय जनजातीय महोत्सव का शुभांरभ जेएमएम सुप्रीमो सह राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन करेंगे। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल शामिल होंगे, मौके पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उपस्थित रहेंगे। इसके अलावे कई अतिथि इस कार्यक्रम में शामिल होंगे। जानकारी के अनुसार, महोत्सव में ओड़िसा, असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और पूर्वोत्तर राज्यों के कई सांस्कृतिक दल और हस्त शिल्पकारों के समूह भाग लेंगे।
इस परंपरा की शुरूआत साल 1982 में हुई
इधर विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र भी हर साल बड़े पैमाने पर आयोजन करता है। इस वर्ष विश्व आदिवासी दिवस का थीम ‘ पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और प्रसारण में स्वदेशी महिलाओं की भूमिका’ रखा गया है। इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में ओड़िसा की रहने वाली अर्चना सोरेंग प्रमुख भाषण देंगी, जिसे Zoom App के अलावे सोशल मीडिया साइट्स पर भी प्रसारित किया जाएगा। आपको बता दें इस परंपरा की शुरूआत साल 1982 में हुई है जिसे हर साल पालन किया जाता है।
न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित मुख्य समारोह में अर्चना सोरेंग के अलावा तीन और वक्ता साथ होंगे। इनके नाम एइली केस्किटालो, जाकियातू ओआलेट हेलाटिन और हाना मैकग्लेड हैं। अर्चना सोरेंग संयुक्त राष्ट्र महासचिव के यूथ एडवाइजरी ग्रुप ऑन क्लाइमेट चेंज की सदस्य हैं। एइली नॉर्वे के सामी पार्लियामेंट की पूर्व प्रेसिडेंट हैं और जाकियातू माली की पूर्व पर्यटन मंत्री हैं।
प्रकृति प्रेमी और संरक्षक होते है आदिवासी
भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। ये मूलतः प्रकृति प्रेमी और संरक्षक होते है, वे प्रकृति पूजक होते है, प्रकृति की गोद में पलने वाले इस मानव समाज की एक अलग ही पहचान होती है, आदिवासी समुदाय की पहचान इनकी संस्कृति, भाषा और पर्व-त्यौहारों में भी साफ झलकता है। पेशे की बात करें तो, इनका मुख्य पेशा खेती-बाड़ी होता है, वे खेती-किसानी से ही अपना और परिवार का भरण-पोषण करते है।
मुख्य पेशा ज्यादातर खेती-किसानी से जुड़ा होता है
आदिवासी समुदाय प्रकृति के सभी घटकों- पेड़-पौधे, धरती, सूर्य, नदियों और पहाड़ों का सादर वंदन और पूजा करते हैं। ये जल-जंगल के बेहद करीब होते हैं और पावन धरती को अपनी मां समान मानते हैं। इनका मुख्य पेशा ज्यादातर खेती-किसानी से जुड़ा होता है। वे जल-जंगल को अपना रखवाला मानते हैं इसलिए उसकी रक्षा करते हैं। वे सीख देते हैं कि अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे तो वो भी हमारी रक्षा करेंगे।