शारदीय नवरात्रि में नाै दिन तक मां दुर्गा की पूजा और भक्ति के बाद आखिर में दसवें दिन धनबाद कोयलांचल में भी धूमधाम से विजयादशमी मनाई जा रही है। साथ ही आज दुगोत्सव भी संपन्न हो गया। मां दुर्गा की पूजा के लिए शहर में जगह-जगह बनाए गए पंडालों में स्थापित मां दुर्गा की के कलश का विसिर्जन किया गया। इस माैके पर सिंदूर खेला की रश्मअदायगी हुई। महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर खूब ‘सिंदूर खेला’ का खेल खेला। हालांकि यह क्षण थोड़ी देर के लिए बड़ा ही भावुक था। मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाओं के आंख नम थे। हालांकि नाचते गाते मां को विदाई दी गयी।
दशमी पर सिंदूर लगाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है
विजयादशमी को लेकर देश के अलग-अलग जगह पर अलग-अलग मान्याताएं हैं। इस दिन बंगाल में सिंदूर खेलने की परंपरा होती है, जिसे ‘सिंदूर खेला’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पंडालों में मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। दशमी पर सिंदूर लगाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। खासतौर से बंगाली समाज में ‘सिन्दूर खेला’ का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा करीब चार सौ साल पुरानी है। झारखंड का धनबाद जिला पश्चिम बंगाल से लगा हुआ है। वैसे 1956 से पहले यह भाग पश्चिम बंगाल का ही हिस्सा था। ऐसे में धनबाद पर बंगाल की संस्कृति का प्रभाव है। इस कारण विजयादशमी पर यहां की महिलाएं सिंदूर खेला की रश्मअदायगी करती हैं।
सिन्दूर लगाने की इसी प्रथा को कहते हैं सिन्दूर खेला
दशमी वाले दिन सुहागिन महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहनती है, और मांग में ढेर सारा सिंदूर भर कर पंडाल जाती है, जहां वे मां दुर्गा को उलूध्वनी निकालकर विदा करती हैं। सभी शादीशुदा महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं। उसके बाद माँ को पान और मिठाई का भोग लगाती है, और आखिर में एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। सिन्दूर लगाने की इसी प्रथा को सिन्दूर खेला कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला में शामिल होती हैं, उनके पति की उम्र लम्बी होती है और उनका सुहाग सलामत रहता है।