दीपावली को अब कुछ ही दिन रह गए हैं। इसी के साथ ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। गांवों में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात काम कर रहे हैं। कुम्हारों को उम्मीद है कि दीपावली पर इस बार लोगों के घर आंगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे और उनके कारोबार को दोबारा दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे।
घर-आंगन मिट्टी के दीये से होंगे रोशन
आधुनिकता के इस दौर में भी मिट्टी के दीये की पहचान बरकरार रखने के कारण कुम्हारों के कुछ कमाई की उम्मीद बन गई है। कुम्हारों का कहना है पहले लोग पूजा पाठ के लिए सिर्फ 5, 11 या 21 दीये खरीदते थे। मगर पिछली दिवाली में लोगों ने 10 से 12 दर्जन दीये खरीदे थे। इस बार की दिवाली में कुम्हारों को उम्मीद हैं कि इस बार की दीपावली में एक बार फिर दीया और बाती का मिलन होगा और लोगों के घर-आँगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे।
गांव में सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहां पूरा सहयोग मिलता रहा, वहीं गाँव में रोजगार के अवसर भी खूब रहे। इनमें से ग्रामीण कुम्हारी कला भी एक रही है, जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी-रोटी का बड़ा सहारा रहा। बोकारो जिला में इस बिरादरी के लोगों की संख्या भी काफी है।
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मिट्टी को मंगल ग्रह का माना जाता है प्रतीक
हिंदू परंपरा में मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है।