स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी, समाजवाद के प्रबल पुरोधा और कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी की सृजन का साधना स्थल जयप्रकाश केंद्रीय कारा हजारीबाग रहा है। पत्रकारिता के अग्रदूत के रूप में रामवृक्ष बेनीपुरी पूरे हिंदी प्रदेश में विख्यात थी। अप्रैल 1953 में दिल्ली आकर उन्होंने जनतंत्र का वैभव देखा। अपनी पुस्तक में उन्होंने जिक्र करते हुए लिखा है, कि साम्राज्यवादी तंत्र कांग्रेस ने विरासत में पाया था। यह विशाल भवन जिसके नीचे गरीब देश की संसद बैठती है अंग्रेजों ने जिसे साम्राज्य के प्रतीक के रूप में बनाया था उसे ही हमने जनतंत्र का प्रतीक मान लिया है। कहां साम्राज्यवाद और कहां जनतंत्र।
हजारीबाग और गया जेल में नजरबंद रहे
राम वृक्ष बेनीपुरी का मानना था कि अंग्रेजी सरकार उन्हें कारागार में भले ही डाल सकती है लेकिन उनके विचारों को कभी कैद नहीं कर सकती। उनका जेल का जीवन 1930 से प्रारंभ होता है। सबसे पहले हजारीबाग में 1930 में ही जेल में छह माह की सजा उन्होंने काटी थी। उन्हें इसी कारागार में डेढ़ वर्ष की सजा 1932 में, 1937 में 3 माह की सजा तथा 1940 में 1 वर्ष की सजा काटी थी। 1942 से 1945 तक हजारीबाग और गया जेल में नजरबंद रहे।
जेल जीवन को रचनात्मक रूप में बदला
उन्होंने जेल जीवन को रचनात्मक रूप में बदलने का काम किया और साहित्य सृजन करके कई नई पुस्तकों की रचना की। उसी समय 1930 में हजारीबाग जेल में हस्तलिखित कैदी और 1942 में तूफान पत्रिका का संपादन किया। लाल रूस और रूसी क्रांति पुस्तक की हजारीबाग जेल में ही लिखी गई थी। अंबपाली नाटक भी 1940 से 45 के बीच जेल के एकांत वार्ड में ही लिखी गई थी।
जयप्रकाश नारायण को जेल से बेनीपुरी ने ही कराया था पलायन
लोकनायक जयप्रकाश नारायण को जेल से पलायन करवाने में स्वर्गीय बेनीपुरी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनके बारे में यह कहा जाता है, कि बेनीपुरी की रचनाओं मैं अर्धविराम और पूरणविराम भी मुखर होकर बोलते हैं। वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था की दुर्दशा को उन्होंने पांच दशक पूर्व ही आभास कर लिया था। जिसकी चर्चा बेनीपुरी ग्रंथावली में की गई है।