तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (KCR) ने पिछले साल एक बड़ी कोशिश की। शुरुआत उन्हें अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति (BRS) करने से की। KCR सिर्फ दक्षिण की राजनीति से खुश नहीं हैं, उन्हें राष्ट्रीय राजनीति की तलब है। तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिलाने की उनकी सफल कोशिश के बाद अब अगला प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी को ले जाने की है। बड़ी बात ये है कि इसके लिए KCR ने Bihar को अपनी कर्मभूमि का हिस्सा बनाने कोशिश की है। उनकी कोशिश है कि छोटे दलों को BRS में शामिल कराकर वे बिहार में वोट और सीट हासिल कर सकें।
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पप्पू यादव पर निशाना!
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि BRS ने पप्पू यादव से सम्पर्क किया है कि वो उनकी पार्टी का हिस्सा बन जाएं। पप्पू यादव BRS में शामिल होंगे या नहीं, यह कहना तो मुश्किल है। लेकिन BRS की उम्मीदों पर पप्पू यादव की राजनीतिक स्थिति फिट बैठती है। दरअसल, पप्पू यादव बिहार में अभी तीसरे फ्रंट की तरह हैं। वैसे तो वे न लोकसभा में हैं और न ही विधानसभा में उनके पास कोई जगह है। लेकिन महागठबंधन की सात पार्टियां और एनडीए के दो दलों के अलावा पप्पू यादव बड़ा नाम हैं जो तीसरा फ्रंट बना सकते हैं। चिराग पासवान एनडीए के फोल्ड वाले नेता माने जाते हैं जबकि मुकेश सहनी दोनों में से किसी फोल्ड में जा सकते हैं। अकेले पप्पू यादव ही ऐसे नेता हैं जो दोनों से बराबर का विरोध रखते हुए लड़ाई लड़ सकते हैं।
झारखंड में भी KCR का प्रयास
राष्ट्रीय राजनीति में वैसे तो दक्षिण के कुछ नेता अभी भी हैं। लेकिन पीएम पद पर एचडी देवेगौड़ा के बाद साउथ का कोई नेता नहीं बैठा। ऐसे में KCR खुद की जगह बनाने के प्रयास में हैं। सूत्र बताते हैं कि बिहार के अलावा झारखंड में भी केसीआर ने बात की है। यह पूरी कवायद लोकसभा में वोट और सीटें इकट्ठा करने की है। केसीआर को तेलंगाना में भाजपा से सीधे चुनौती मिल रही है तो ऐसे में वह भी बीजेपी को तेलंगाना से बाहर घेरने की कवायद में है। लेकिन साथ ही केसीआर की अपनी महत्वकांक्षा भी है जो बिना तीसरे मोर्चे के बने पूरी नहीं हो सकेगी। इसलिए BRS अपने संगठन के विस्तार के लिए जनाधार वाले नेताओं के साथ गठबंधन नहीं विलय करने की रणनीति पर काम कर रही है।
नीतीश से अलग है BRS की कोशिश
वैसे 2024 का लोकसभा चुनाव ऐसे वक्त में होगा जब एक साथ कई नेता अपनी राष्ट्रीय महत्ता स्थापित करने की कोशिश कर सकते हैं। इनमें एक हैं बिहार के सीएम नीतीश कुमार। लेकिन नीतीश कुमार की स्ट्रेटजी अब तक गठबंधन कर आगे बढ़ने की है। जबकि BRS बड़े नेताओं वाली छोटी पार्टियों के विलय के रास्ते पर चल रही है। वैसे नीतीश कुमार की JDU और RJD के विलय की भी चर्चा है। अगर ऐसा होता है तो KCR और नीतीश कुमार की कोशिशें समानांतर रूप से एक दिशा में चलने लगेंगी।
सीटों के गणित में भाजपा को उलझाने का प्रयास
2019 के चुनाव में भाजपा ने 303 सीटें जीतीं। एनडीए का जो मौजूदा स्वरूप है उसके मुताबिक 318 सीटें एनडीए के पास हैं। लेकिन एक तस्वीर ये भी है कि देश की कुल 545 लोकसभा सीटों में से 131 संसदीय सीटें दक्षिण भारत से आती हैं। कर्नाटक में 28, तेलंगाना में 17, आंध्र प्रदेश में 25, तमिलनाडु में 39, केरल में 20, पुडुचेरी और लक्ष्यदीप में 1-1 सीट है। निश्चित तौर पर दक्षिण भारत पर जीत भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है क्योंकि उत्तर और पूर्व में भाजपा अपने चरम पर है। यानि वहां से सीटें कम ही होंगी।
इसलिए भाजपा को अपना जोर दक्षिण में सीटें बढ़ाने पर लगाना होगा। केसीआर की यही कोशिश है कि दक्षिण के राज्यों में तो भाजपा की कोशिश पिछले कई चुनावों से रंग नहीं ला रही। केरल और तमिलनाडु में तो भाजपा का खाता भी नहीं खुल रहा। ऐसे में उन राज्यों में अलग तरह से भाजपा को परेशान किया जाए। जिससे भाजपा और कांग्रेस दोनों से अलग तीसरे चेहरे तक बात आए।