बिहार की राजनीति में इन दिनों बदलाव की हवा तेज चलने लगी है। हर पार्टी के कुछ नेताओं को दूसरों की पार्टी अच्छी लग रही है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन को जदयू की याद सताने लगी तो वे लौट गए। तो दूसरी ओर जदयू के उपेंद्र कुशवाहा बीमार पड़े तो भाजपा नेताओं को उनकी चिंता सताने लगी है। तो राजद भी इस बदलाव के लहर में अछूता नहीं रह गया है। क्योंकि राजद के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी को इन दिनों असदुद्दीन Owaisi अच्छे लगने लगे हैं। एक इंटरव्यू में सिद्दीकी ने साफ कहा है कि वे अच्छा बोलते हैं और अपनी सियासत भी बढ़िया करते हैं। अगर Owaisi की सियासत सिद्दीकी को पसंद आ रही है, तो तेजस्वी क्या करेंगे, यही सबसे बड़ा सवाल उठेगा।
BH को साध कर M-Y को काटने की तैयारी, Amit Shah का Bihar दौरा क्यों महत्वपूर्ण?
सिद्दीकी के AIMIM में जाने की चर्चा
अब्दुल बारी सिद्दीकी AIMIM में जा सकते हैं, ऐसी चर्चा चल रही है। इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार इंद्रभूषण के साथ इंटरव्यू में सिद्दीकी ने कहा कि “सच्चाई क्या है, पब्लिक सब जानती है। पब्लिक ही संगठन और पार्टी बनवाती है। नेता का चाल-चरित्र सब वही जानती है। मेरे बारे में भी चर्चा चलती रहती है। हम संपूर्ण आंदोलन की उपज हैं। कर्पूरी ठाकुर हमारे आदर्श हैं। बर्दाश्त नहीं होगा तो घर बैठ जाएंगे। अभी उनका (ओवैसी) रास्ता अलग है, हमारा अलग है। वे अच्छा बोलते हैं और अपनी सियासत भी बढ़िया करते हैं।”
CM नहीं बनना चाहते सिद्दीकी
बिहार की राजनीति में अब्दुल बारी सिद्दीकी पुराना नाम हैं लेकिन वर्तमान में वे किसी भी सदन का हिस्सा नहीं है। राजद ने उन्हें संगठन में अच्छी पोजीशन दी है। उन्हें राष्ट्रीय प्रधान महासचिव बनाया है। लेकिन सिद्दीकी खुद भी राजनीति में CM का पद या बड़ी इच्छा नहीं रखते हैं। इस इंटरव्यू में ही सिद्दीकी ने बताया है कि “नेता ही नहीं, हर राजनीतिक कार्यकर्ता की राजनीति के उच्चस्थ पद पर जाने की इच्छा रहती है। पर हम अपनी वास्तविकता से अवगत हैं। आसमान से तारा तोड़ने की कल्पना नहीं रखते।”
AIMIM में जाने के सवाल क्यों उठे?
दरअसल, पिछले कुछ महीनों से सिद्दीकी राजद में अपनी पारी खत्म होते देख रहे हैं। इसका कारण यह है कि 2019 में लोकसभा चुनाव और 2020 में विधानसभा चुनाव में उनकी हार हुई है। लोकसभा चुनाव में वे दरभंगा सीट से हारे जबकि विधानसभा में केवटी सीट से। लेकिन बड़ी समस्या तब हुई जब उन्हें राजद ने विधान परिषद नहीं भेजा। साल 1977 में अपना पहला ही विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अब्दुल बारी सिद्दीकी को कर्पूरी ठाकुर की सरकार में संसदीय कार्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन इसके बाद 1980 से लेकर 1990 तक लगातार तीन चुनावों में सिद्दीकी हार गए। इसके बावजूद 1992 में विधान परिषद सदस्य बनाया गया। लेकिन इस बार दो चुनावों में हार के बाद किनारे लग गए हैं।
Owaisi की भाषा भी बोलने लगे हैं सिद्दीकी
असदुद्दीन ओवैसी की पॉलिटिक्स में वे भाजपा के खिलाफ अल्पसंख्यक कम्युनिटी को एकजुट करने का प्रयास करते हैं। कुछ ऐसी ही बातें इन दिनों सिद्दीकी भी करने लगे हैं। कुछ दिन पहले सिद्दीकी ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि उन्होंने अपने बेटे और बेटी को सलाह दी है कि वे विदेशों की नागरिकता ले लें। क्योंकि भारत में अब रहने वाले हालात नहीं है। उनका यह बयान विवादित रहा था।