ध्रुव गुप्त.
भारतीय फिल्म संगीत में नया अंदाज़, नई अदा, नए तेवर, नया उल्लास और नई व्यथा रचने वाले ए.आर. रहमान का नाम आज पूरी दुनिया में सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने हिंदुस्तानी,कर्नाटक और पाश्चात्य संगीत शैलियों के मेल से सुरों का एक ऐसा तिलिस्म रचा जो एक साथ पुरानी और नई दोनों पीढ़ियों को अपने साथ बहाकर ले गया। सुरों के नए जादूगर रहमान का संगीत सुनना कभी नदी की शांत लहरों में खामोश बहने का एहसास है, कभी भावनाओं के ज्वारभाटे के साथ उछलने-गिरने का रोमांच और कभी उसके तेज-तेज रिद्म के साथ थिरक लेने का सुख। ग्यारह साल की उम्र में अपने मित्र शिवमणि के साथ ‘बैंड रुट्स’ के लिए की-बोर्ड बजाने से लेकर फिल्म संगीत के उच्चतम शिखर तक की उनकी यात्रा किसी परीकथा से कम रोमांचक नहीं है। फिल्मकार मणि रत्नम की फिल्मों – रोजा, बॉम्बे, दिल से और गुरु ने शुरुआत में उन्हें वह आकाश दिया जहां से उन्होंने ऊंची-ऊंची उड़ाने भरी। अपने छोटे कैरियर में चार राष्ट्रीय और पंद्रह फिल्मफेयर पुरस्कारों के अलावा दो ग्रैमी पुरस्कार, गोल्डन ग्लोब अवार्ड और ऑस्कर हासिल करने वाले रहमान पहले भारतीय संगीतकार हैं। एक गायक के तौर पर उनका मूल्यांकन अभी बाकी है, लेकिन अपनी फिल्मों में उनके गाए कुछ बेहतरीन गानों- ओ हमदम तेरे बिना क्या जीना, बंजर है सब बंजर है, लुक्का-छिप्पी बहुत हुई, रूबरू रौशनी, ये जो देश है तेरा, ख्वाजा मेरे ख्वाजा, दिल से रे और मां तुझे सलाम भावुकता की जिस ऊंचाई और गहराई की सृष्टि करते हैं उनसे गुजरना एक विरल अनुभव है।
भारत की शान रहमान को आज उनके जन्मदिन पर बधाईयां और शुभकामनाएं ! #ARRahman

पूर्व आईपीएस
ध्रुव गुप्त की फेसबुक वाल से साभार