saraikela: 21वीं सदी के भारत में आज भी अंधविश्वास आस्था पर भारी है। झारखंड के कई जिलों में अंधविश्वास के नाम पर हैरतअंगेज कारनामे देखने और सुनने को मिलते हैं। शरीर में सुई चुभते ही लोगों को दर्द सहन करना मुश्किल होता है। ऐसे में यदि किसी के पीठ में लोहे की कील फंसा कर उसे रस्सी और बांस के खंभे के सहारे ऊंचाई पर टांग दिया जाए और उसे गोल- गोल घुमाया जाए तो उसकी पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। परंतु शिव भक्त इसे हंसते- खेलते बर्दाश्त कर जाते हैं।
सदियों से चली आ रही परंपरा
कोल्हान क्षेत्र की यह अनूठी परंपरा है ,जो सदियों से चली आ रही है। सरायकेला प्रखंड के गोविंदपुर पंचायत के भुरकुली में प्रतिवर्ष की भांति शुक्रवार को विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान व छऊ नृत्य के साथ पांच दिवसीय चैत्र पर्व उत्सव का समापन हुआ। भुरकुली में चैत्र सांक्रांति के मौके पर प्रतिवर्ष की भांति शिव मंदिर प्रांगण में शुभ घट, यात्रा घट, गरिया घट, कालिका घट, सती घट, अग्निपाट, चड़क पूजा व छऊ नृत्य समेत विभिन्न कार्यक्रम एवं धार्मिक अनुष्ठानों के साथ चैत्र पर्व का आयोजन किया गया।
जिसका शुभारंभ बुधवार को घटपाट पूजा के साथ किया गया था। गुरुवार को पाट भक्ता के साथ बारह भक्ता उपवास व्रत, शुभ घट, यात्रा घट, गरिया घट, कालिका घट व सती पाट के साथ छऊ नृत्य का आयोजन किया गया, जिसमें स्थानीय एवं दूरदराज गांवों के काफी संख्या में श्रद्धालु एवं दर्शकों की भीड़ थी।
शरीर को कष्ट देने में भक्तों को सुकून मिलता
इसे चाहे अंध विश्वास की पराकाष्ठा कहें, या अपने आराध्य देव भोलेनाथ शिवशंकर के प्रति अटूट आस्था, इन दोनों ही तथ्यों में सरायकेला के भुरकुली में एक ऐसी परंपरा है। जिसमें मन व आत्मा की शांति के लिए शरीर को बेहद कष्ट देने में हठी भक्तों को सुकून मिलता है। हर वर्ष शिव भक्त पूर्व में मांगे गये मन्नत पूरी होने की खुशी में अपनी पीठ की चमड़ी में छेद करा कर बल्ली के सहारे आकाश में झूलते हैं।
भुरकुली के चैत्र पर्व उत्सव में आज ऐसा ही कुछ अजीबोगरीब नजारा देखने को मिला। करीब दो दर्जन भक्तों ने तो ढ़ोल- नगाडों की थाप पर जलते आग के शोलों पर नृत्य किया। कई भक्त बबूल, बेर, बेल के कांटेदार टहनियों को फूलों की सेज समझ कर सोए, कई भक्त लकड़ी के तख्ते पर गाड़े गये नुकीले कांटी पर सो कर अपने आराध्य देव से किया हुआ मन्नत पूरा किया।
भक्त दहकते अंगारे पर चलते है
चैत्र संक्रांति के दिन शोभा यात्रा, मोड़ा पाट, चलती गाजाडांग, रजनी फोड़ा, जिव्हा वाण व अग्नि पाट का आयोजन किया गय। इस मौके पर सैकड़ों बकरे की पूजा की गई। सांक्रांति के दिन आयोजित अग्नि पाट में भक्त दहकते अंगारे पर चले, परंतु उनके पैरों में आंच तक नहीं आई। मोड़ा पाट में कील ठोंके गए लकड़ी के तख्ते पर सोये एक भक्त को अन्य भक्तों द्वारा ढोकर मंदिर तक लाया गया। चलंती गाजाडांग में चार चक्के पर बनाए रथ के उपर भक्त लोहे का हुक फंसाकर बल्ली से लटकते हुए हवा में गोता लगाए।
भुरकुली के चैत्रपर्व में सैकड़ों पाट भोक्ता एवं वार भोक्ता उपवास के साथ व्रत पालन करते हुए यात्रा घट, गरिया घट, कालिका घट, सती घट व चड़क डांग लाने के कार्यक्रम में भाग लिए. मन्नत रखने वाले अनेक भक्त एवं श्रद्धालुओं ने घट- पाट के शोभा यात्रा व चड़क पूजा में अंश ग्रहण किया. उत्सव में स्थानीय एवं दूरदराज के काफी संख्या में श्रद्धालु व दर्शकों की भीड़ रही।
जख्म पर भर देते हैं सिंदूर
इस रस्म के पूरा होने के बाद पाटुआ या भक्त को नीचे उतारा जाता है। उनकी पीठ से कांटे निकाल कर पूजा में इस्तेमाल किए गए सिंदूर को जख्म पर भर दिया जाता है। ये न तो डाक्टर के पास जाते हैं और न ही किसी प्रकार की दवा या सुई का सेवन करते हैं। इनके जख्म खुद भर जाते हैं। पूजा होने के बाद देवी को प्रसन्न करने के लिए बकरे की पूजा की गई। इसके बाद पाटुआ महीने भर गांवों में घूमकर पाटुआ नृत्य और गाना गाते हैं।