जातिगत जनगणना पर पटना हाईकोर्ट की रोक के बाद बिहार की नीतीश सरकार को एक और बड़ा झटका लगा है। दरअसल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने वैज्ञानिक रूप से ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन करने में विफल रहने को लेकर बिहार सरकार पर 4,000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। चेयरपर्सन जस्टिस एके गोयल की पीठ ने निर्देश दिया कि राशि को दो महीने के भीतर जमा कराया जाए।
दो महीने के भीतर राशि जमा करने का निर्देश
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए के गोयल की पीठ ने निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि दो महीने के भीतर ‘रिंग-फेंस खाते’ में जमा कराई जाए। मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार राशि का इस्तेमाल राज्य में सिर्फ अपशिष्ट प्रबंधन के लिए किया किया जाएगा। रिंग-फेंस खाते में जमा राशि के एक हिस्से को विशिष्ट उद्देश्य के लिए आरक्षित रखा जाता है। पीठ में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी के साथ विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद तथा ए सेंथिल वेल भी शामिल थे।
बिहार पर शहरी कचरे के प्रबंधन का बोझ
एनजीटी ने उल्लेख किया कि बिहार पर 11.74 लाख मीट्रिक टन से अधिक पुराने कचरे के साथ प्रति दिन उत्पन्न होने वाले 4,072 मीट्रिक टन अशोधित शहरी कचरे के प्रबंधन का बोझ है। राज्य में तरल अपशिष्ट उत्पादन और उपचार में 2,193 मिलियन लीटर प्रति दिन का अंतर है। पीठ ने सुझाव दिया कि उपयुक्त जगहों पर खाद बनाने में गीले कचरे का इस्तेमाल करने के लिए बेहतर विकल्पों का पता लगाया जाना चाहिए। विकेंद्रीकृत/पारंपरिक प्रणालियों या अन्य में शामिल वास्तविक खर्चों को देखते हुए जलमल उपचार संयंत्रों के लिए व्यय के पैमाने की समीक्षा की जा सकती है।