लोकसभा चुनाव में 2019 में कई रिकॉर्ड बने। बिहार इस मामले में खास रहा क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी गठबंधन को 40 में से 39 सीटें मिल गईं। इसमें भाजपा की तो जैसे लॉटरी लग गई क्योंकि 17 सीटों पर चुनाव लड़ी भाजपा का कोई उम्मीदवार नहीं हारा। वैसे चुनाव नहीं हारने का रिकॉर्ड भाजपा के पास पहले भी रहा है। पश्चिम चंपारण की लोकसभा सीट ऐसी ही सीटों में से एक है। पश्चिम चंपारण लोकसभा चुनाव में अब तक भाजपा की जीत के अश्वमेघ का घोड़ा कभी रुका ही नहीं। ऐसा नहीं है कि पश्चिम चंपारण सीट पर भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष की ओर से कमजोर योद्धा गए। कभी दांव उस रघुनाथ झा ने भी आजमाया, जो कभी सीएम के उम्मीदवार बनने की रेस में शामिल हो गए थे। लेकिन भाजपा की जीत का घोड़ा बढ़ता रहा। इस सीट पर किस्मत साधु यादव और प्रकाश झा जैसी शख्सियत ने भी आजमाया, लेकिन सबके नसीब में हार ही मिली।
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गोपालगंज के दो पूर्व सांसदों ने आजमाई किस्मत
2009 में अस्तित्व में आने के बाद से पश्चिम चंपारण की लोकसभा सीट पर डॉ. संजय जायसवाल ही सांसद हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे संजय जायसवाल ने चुनाव दर चुनाव जीत के अंतर को दोगुना ही किया है। वैसे संयोग यह रहा है कि 2009 से 2019 तक हुए तीन चुनावों में दो बार उन पूर्व सांसदों ने इस सीट से किस्मत आजमाई है, जो यहां के मूल निवासी नहीं थे। संयोग यह भी रहा कि ये दोनों गोपालगंज सीट से सांसद रहे थे। इसमें पहला नाम है साधु यादव का। 2004 में गोपालगंज से राजद के टिकट पर चुनाव जीते साधु यादव ने 2009 में कांग्रेस के टिकट पर पश्चिम चंपारण में किस्मत आजमाई। हाथ निराशा ही आई। 2014 में इस सीट से रघुनाथ झा चुनाव लड़ने पहुंचे। इससे पहले 1999 में रघुनाथ झा गोपालगंज से सांसद बने थे। जबकि 2004 में बेतिया लोकसभा सीट से रघुनाथ झा जीते। लेकिन 2009 के बाद बेतिया लोकसभा सीट का अस्तित्व समाप्त हो गया और नई सीट बनी पश्चिम चंपारण। यहां से 2014 में एक बार फिर रघुनाथ झा ने किस्मत आजमाई लेकिन जीत नहीं सके।
दो चुनावों में दूसरे स्थान पर रहे प्रकाश झा
पश्चिम चंपारण सीट से सांसद बनने की कोशिश अपहरण, राजनीति जैसी फिल्में बनाने वाले प्रकाश झा की भी रही है। उन्होंने दो बार पश्चिम चंपारण सीट से लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाया। लेकिन पर्दे पर राजनीति जैसी हिट फिल्म के डायरेक्टर प्रकाश झा, बिहार की राजनीतिक जमीन पर पिछड़ गए। 2009 और 2014 में उन्होंने दो अलग अलग पार्टियों से चुनाव लड़ा और हर बार दूसरे नंबर पर रहे। 2009 में प्रकाश झा ने लोजपा से चुनाव लड़ा था। 2014 में जदयू ने प्रकाश झा को उम्मीदवार बनाया था। पहली बार प्रकाश झा 47,343 वोट से पिछड़े तो दूसरी बार जीत का अंतर 1,10,254 वोट हो गया।
मौजूदा स्थिति में भाजपा का पलड़ा भारी
वैसे तो हर चुनाव अलग होता है। लेकिन पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र में मौजूदा स्थिति की बात करें तो भाजपा का पलड़ा भारी है। इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल 6 विधानसभा सीटें हैं। इसमें चार सीटों नौतन, चनपटिया, बेतिया और रक्सौल विधानसभा सीट पर भाजपा के विधायक 2020 में जीते हैं। दो सीटों सुगौली और नरकटिया पर राजद ने 2020 में जीत दर्ज की थी। पश्चिम चंपारण में स्थिति यह है कि भाजपा ने जदयू के साथ और जदयू के बिना, दोनों परिस्थितियों में जीत दर्ज की है। लेकिन अगला मुकाबला राजद, जदयू और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार वाला हो सकता है। इसलिए पश्चिम चंपारण में कोई बड़ा उलटफेर भी हो जाए, तो आश्चर्यजनक नहीं होगा।