बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार बनते वक्त एक ही बात चली कि भाजपा अकेली पड़ गई और सरकार सात दलों का गठबंधन है। लेकिन आज इसी गठबंधन के एक दल ने नीतीश-तेजस्वी की सरकार के फैसले पर न सिर्फ सवाल उठाया है, बल्कि उसे वापस लेने की भी मांग की है। मामला उस सर्कुलर से जुड़ा है जो नीतीश-तेजस्वी की सरकार के शिक्षा विभाग की ओर से आया है। सवाल उठाया है भाकपा माले के पालीगंज से विधायक संदीप सौरव ने। विधायक संदीप सौरव ने इस मामले में सरकार की पूरी नीति पर तो सवाल उठाए ही हैं, नीयत पर भी सवाल उठाए हैं।
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शिक्षक नियुक्ति नियमावली के विरोध को समर्थन
विधायक संदीप सौरव ने बिहार सरकार की नई शिक्षक नियुक्ति नियमावली को अतार्किक और शिक्षक विरोधी बताया है। उन्होंने कहा है कि इसे वापस लिया जाना चाहिए। साथ ही संदीप सौरव ने शिक्षा विभाग के उस सर्कुलर पर भी आपत्ति जताई है, जिसमें शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह द्वारा जारी किए गए पत्र में यह कहा गया है कि अगर नियोजित शिक्षकों ने किसी तरह के धरना-प्रदर्शन में भाग लिया तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
वापस लेने की मांग
शिक्षक नियमावली को लेकर शिक्षकों का विरोध अपनी जगह पर है। लेकिन नियमावली के विरोध को संदीप सौरव ने अपना समर्थन दिया है। नियमावली के विरोध को दबाने के लिए शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि स्थानीय निकाय के नियोजित शिक्षक अथवा किसी भी अन्य सरकारी कर्मी नियुक्ति नियमावली के विरोध में किसी भी प्रकार के धरना प्रदर्शन या अन्य सरकार विरोधी कार्यक्रमों में भाग लेने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी। अब संदीप सौरव ने इस सर्कुलर को वापस लेने की मांग की है। संदीप सौरव का कहना है कि ‘नियमावली’ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से रोकने वाला यह सर्कुलर अफ़सोसजनक है। यह शिक्षा विभाग की तानाशाही है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि सरकार को ऐसे आलोकतांत्रिक आदेश को वापस लेना चाहिए और आंदोलनरत नियोजित शिक्षकों से संवाद करना चाहिए।