बिहार में जातिगत जनगणना पर रोक के पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची नीतीश सरकार को राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने कहा कि पहले 3 जुलाई को हाईकोर्ट को मामले को सुनने दीजिए। अगर वहां से आपको राहत नहीं मिलती तो हम 14 जुलाई को इस मामले में सुनवाई करेंगे।
नहीं मिला 10 दिन का समय
सरकार की ओर से कोर्ट में बताया गया कि सर्वे का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। हमें सर्वे का काम पूरा करने दीजिए। हमें सिर्फ 10 दिन का समय दिया जाए, ताकि हमारा सर्वे पूरा हो जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मामला हाईकोर्ट में लंबित है। उन्हें सुनवाई करने दीजिए। अगर वहां से आपको राहत नहीं मिलती तो आप यहां आ सकते हैं। बिहार सरकार ने पिछले साल जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया था। इसका काम जनवरी 2023 से शुरू हुआ था। इसे मई तक पूरा किया जाना था। लेकिन अब हाईकोर्ट ने इस पर 3 जुलाई तक रोक लगा दी है। बता दें कि जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। कल सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई करने वाले दो जजों की बेंच से जस्टिस संजय करोल ने खुद को अलग कर लिया है।
हाईकोर्ट में दाखिल की गई थीं 6 याचिकाएं
नीतीश सरकार के जातिगत जनगणना कराने के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में 6 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन याचिकाओं में जातिगत जनगणना पर रोक लगाने की मांग की गई थी। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की बेंच ने इस पर 3 जुलाई तक रोक लगा दी थी। वहीं दूसरी ओर बिहार सरकार का जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में तर्क यह है कि 1951 से एससी और एसटी जातियों का डेटा पब्लिश होता है, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का डेटा नहीं आता है। इससे ओबीसी की सही आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल होता है।