बिहार में विधानसभा चुनाव की कभी भी घोषणा हो सकती है. गठबंधन एकबार फिर सत्ता में लौटने के लिए रणनीति तैयार कर रहा है. जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार विभिन्न योजनाओं से वोटरों को रिझाने में लगे हैं तो भाजपा की ओर से अमित शाह दो दिनों में चार बैठकें कर जीत का मंत्र पार्टी पदाधिकारियों को दे दी है. इसके बावजूद इस चुनाव में एनडीए के लिए जीत की राह आसान नहीं है. प्रशांत किशोर की सेंधमारी, मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप और नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर उठ रहे सवाल NDA के लिए चुनौती हैं. इसलिए मिशन 225 के बीच अमित शाह ने 160 से अधिक सीटें जीतने की बात कह दी है.
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2010 के चुनाव में जब एनडीए को सबसे बड़ी जीत मिली थी, तब धर्मेंद्र प्रधान सह प्रभारी थे. भाजपा ने उनपर फिर विश्वास किया है और इस बार उन्हें प्रभारी बनाया है. वे बिहार को समझते हैं. नीतीश कुमार से भी उनका अच्छा तालमेल है. धर्मेंद्र प्रधान के लिए बिहार जीतना इसबार बहुत आसान नहीं है. मगध और शाहाबाद के इलाके को जीतना 2010 में भी NDA के लिए आसान नहीं था. इस इलाके में माले और राजद के गठबंधन के कारण महागठबंधन पहले से काफी मजबूत हो गया है. लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को इस इलाके में सफलता नहीं मिली थी.






















