पटना। बिहार में विशेष सारणी पुनरीक्षण (Special Summary Revision – SIR) को लेकर चुनाव आयोग ने बड़ा निर्देश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के 8 सितम्बर 2025 के आदेश के बाद अब आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा। आयोग ने स्पष्ट किया है कि आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाएगा, लेकिन इसे पहचान के साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है। यह फैसला चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और मतदाता सूची के दुरुस्तिकरण को नई दिशा देगा।
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चुनाव आयोग ने प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 23(4) का हवाला देते हुए आधार कार्ड को 12वें मान्य दस्तावेज के रूप में शामिल किया है। अब वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने या हटाने के लिए आधार की कॉपी देना अनिवार्य होगा। साथ ही अधिकारियों को यह अधिकार होगा कि वे आधार की प्रामाणिकता और वैधता की जांच करें। इससे फर्जी नामों की पहचान आसान होगी और सही मतदाता को उसका संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित किया जा सकेगा।
आयोग ने यह भी साफ कर दिया है कि कोई भी अधिकारी अगर आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करने से इंकार करता है या निर्देशों की अनदेखी करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। इससे पहले कई बार यह सवाल उठता रहा है कि आधार को नागरिकता का प्रमाण क्यों नहीं माना जाता। आयोग ने इसे लेकर कहा कि आधार केवल पहचान दर्शाता है, न कि नागरिकता। इसलिए यह दस्तावेज केवल पहचान प्रमाण के रूप में ही उपयोगी रहेगा।
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बिहार में चुनावी समीकरणों के लिहाज से यह फैसला बेहद अहम माना जा रहा है। खासकर विशेष सारणी पुनरीक्षण के दौरान, जब बड़ी संख्या में नए वोटर जुड़ते हैं और कई नाम हटाए भी जाते हैं, ऐसे में आधार की अनिवार्यता से मतदाता सूची अधिक सटीक हो सकेगी।
इस बीच, भारत निर्वाचन आयोग ने बुधवार सुबह 10 बजे देश के सभी मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के साथ बैठक बुलाने की घोषणा की है। इस बैठक में चुनावी प्रक्रियाओं पर विस्तार से चर्चा होगी और आधार से जुड़ी नई गाइडलाइन्स को लेकर राज्यों को दिशा-निर्देश दिए जाएंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले का असर न सिर्फ बिहार बल्कि आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया पर भी गहरा पड़ेगा।


















