बिहार की राजनीति में कुछ इलाके केवल चुनावी मैदान नहीं, बल्कि शक्ति प्रदर्शन के अखाड़े माने जाते हैं। इन्हीं में से एक है राघोपुर विधानसभा सीट, जिसे लालू यादव का अभेद्य किला कहा जाता है। इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की मजबूत पकड़ रही है, लेकिन क्या 2025 का चुनाव इस समीकरण को बदलने वाला है?
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इस बार, जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर (PK) ने संकेत दिया है कि वे राघोपुर से चुनाव लड़ सकते हैं। यह खबर आते ही बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है, क्योंकि यह वही सीट है जहां से लालू परिवार की ‘त्रिमूर्ति’ यानि खुद लालू यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और अब तेजस्वी यादव लगातार चुनाव जीतते आए हैं।
राघोपुर: RJD की जीत की परंपरा
राघोपुर की राजनीति को समझने के लिए हमें पीछे जाना होगा। 1967 के बाद से इस सीट पर कोई गैर-यादव उम्मीदवार नहीं जीता है। यहां लालू यादव दो बार विधायक रहे, राबड़ी देवी तीन बार और 2015 से तेजस्वी यादव लगातार जीतते आ रहे हैं। 2015 में पहली बार विधायक बनने के बाद तेजस्वी डिप्टी सीएम भी बने।
हालांकि, 2010 का चुनाव इस गढ़ में सेंधमारी की एकमात्र मिसाल था, जब नीतीश कुमार की पार्टी के उम्मीदवार सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को हरा दिया था।
लालू के ‘गढ़ों’ में सेंधमारी की पुरानी मिसालें
ऐसा पहली बार नहीं होगा जब लालू परिवार के किले में सेंध लगाने की कोशिश हो रही हो। इतिहास उठाकर देखें तो—
- सारण: लालू यादव ने यहीं से 1977 में पहला लोकसभा चुनाव जीता था, लेकिन बाद में उनकी पत्नी राबड़ी देवी को 2014 में, लालू यादव के समधी चंद्रिका राय को 2019 में और लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य को 2024 इसी सीट से हार का सामना करना पड़ा।
- पाटलिपुत्र: लालू यादव खुद यहां से 2009 में लोकसभा चुनाव हार गए थे। इसी लोकसभा के अंतर्गत आने वाले दानापुर विधानसभा क्षेत्र से लालू यादव विधायक रहे हैं। उनकी बड़ी बेटी मीसा भारती भी 2014 और 2019 में चुनाव नहीं जीत सकीं। हालांकि, 2024 में उन्होंने इस सीट से जीत दर्ज की।
- मधेपुरा: इसे भी लालू का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस सीट से भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
क्या प्रशांत किशोर बदल सकते हैं राघोपुर की सियासत?
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशांत किशोर राघोपुर की राजनीति का नया चेहरा बन सकते हैं?
चुनौतियां:
- जातीय समीकरण प्रशांत किशोर के खिलाफ है। यादव बहुल इस क्षेत्र में 1967 से कोई गैर-यादव नहीं जीता है।
- RJD के पास मजबूत कैडर बेस और परिवारवाद की गहरी जड़ें हैं।
- तेजस्वी यादव की पकड़ पिछले तीन चुनावों में मजबूत रही है।
मौके:
- 2010 में नीतीश कुमार की जीत दिखाती है कि समीकरण बदले जा सकते हैं।
- प्रशांत किशोर का अलग राजनीतिक अंदाज उन्हें बढ़त दिला सकता है।
- अगर एनडीए या अन्य विपक्षी दलों का समर्थन मिलता है, तो मुकाबला रोचक हो सकता है।
प्रशांत किशोर ने हाल ही में कहा कि उन्हें राघोपुर से तेजस्वी के खिलाफ लड़ने का सुझाव मिला है। अगर वह इस चुनौती को स्वीकारते हैं, तो यह चुनाव बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा मुकाबला बन सकता है।
क्या 2025 का राघोपुर चुनाव लालू बनाम प्रशांत किशोर का नया राजनीतिक अध्याय लिखेगा? या फिर RJD एक बार फिर अपनी परंपरा को कायम रखेगी? आने वाला वक्त बताएगा।