BOKARO : मामला बोकारो जिला के गोमिया प्रखंड के बिरहोर डेरा गांव की है। जंगल, नदी, पहाड़ से घिरे बिरहोर डेरा गांव में पक्की सड़क नहीं रहने के कारण गर्भवती आदिवासी महिला की जान पर बन आई। समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका, अंततः दुनिया में पहुंचने से पूर्व ही नवजात को जान गवानी पड़ी। जैसे-तैसे महिला को बचाया जा सका, जिसके लिए गांव की महिलाएं प्रशंसा के पात्र हैं। जिन्होंने अस्पताल पहुंचाने के लिए गर्भवती को खटिया में लादकर जंगल के रास्ते पहले रेलवे ब्रिज पार किया फिर नदी की बहती धारा को, लेकिन जब तक अस्पताल पहुंचते नवजात ने जन्म से पूर्व ही दम तोड़ दिया। महिला की स्थिति भी गंभीर हो गई, जैसे-तैसे निजी अस्पताल के डॉक्टर ने जान बचाई। अभी भी महिला का इलाज उसी अस्पताल में चल रहा है। महिला का पति प्रवासी मजदूर है और अभी कमाने के लिए मुंबई गया हुआ है।
108 एंबुलेंस को सूचना दी लेकिन सड़क बना रोड़ा
गर्भावधि पूरी होने पर महिला को एका-एक लेबर पेन शुरू हो गया। चारो ओर जंगल, पहाड़ और नदी से घिरे बिरहोर डेरा गांव में पहुंचने के लिए आज भी सड़क नहीं है। 108 एंबुलेंस को सूचना दी लेकिन सड़क रोड़ा बन गया, आखिर एंबुलेंस पहुंचे भी तो कैसे। जैसे-तैसे एक रिश्तेदार को सूचना दी गई, जो अपनी निजी कार लेकर नदी किनारे टूटी झरना गांव पहुंचा तब जाकर महिला की अस्पताल पहुंचाया जा सका। लेकिन जब प्रसव के लिए ले जाया गया तो बच्चा उल्टा जन्म ले रहा था, स्थिति काफी खराब थी और उसका आधा शरीर भी बाहर निकल चुका था। देखते-देखते बच्चे की जान चली गई। जिसके बाद महिला की भी स्थिति काफी बिगड़ गई, जैसे तैसे बचाया गया।
दो वर्ष पूर्व पुल का हुआ था शिलान्यास
मौके पर परिजन ने बताया कि हमलोगों ने समय समय पर बिरहोर डेरा गांव की समस्या को लगातार दिखाता रहा है, अधिकारियों ने खबरों को संज्ञान भी लिया विकास से गांव को जोड़ने के लिए नदी में पुल निर्माण का टेंडर कराया। गिरिडीह सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने दो वर्ष पूर्व पुल का शिलान्यास भी किया लेकिन निर्माण कार्य की गति कछुआ से भी धीमी चल रही है। संवेदक की मनमानी और विभागीय अधिकारियों की उदासीनता ने गांव की समस्या को लगातार बढ़ा रही है। समय पर अगर पुल का निर्माण हो गया रहता तो शायद आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। लेकिन किसी की जान जाती है तो चली जाए इसकी चिंता संवेदक व विभागीय अधिकारी क्यूं करे।




















