Amour Vidhansabha: पूर्णिया जिले की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली अमौर विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 56) बिहार की चर्चित और रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण सीट मानी जाती है। 1977 में अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें दो उपचुनाव भी शामिल हैं। इस सीट का राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, जहां कांग्रेस ने सबसे ज्यादा आठ बार जीत दर्ज की है, वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी चार बार जनता का भरोसा हासिल किया है। इसके अलावा पीएसपी ने दो बार और बीजेपी, समाजवादी पार्टी तथा जनता पार्टी ने एक-एक बार जीत का स्वाद चखा है।
चुनावी इतिहास
अमौर विधानसभा का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान लंबे समय तक प्रभावी नेता रहे हैं। वे 1985 से लेकर 2015 तक छह बार विधायक बने और लगातार मुस्लिम वोटरों के साथ-साथ अन्य वर्गों का समर्थन पाते रहे। हालांकि, 2010 में भाजपा की सबा ज़फ़र ने कांग्रेस को कड़ी चुनौती दी और सीट जीतने में सफल हुईं। 2020 के विधानसभा चुनाव में समीकरण पूरी तरह बदल गए और AIMIM के अख्तरुल इमान ने कांग्रेस और बीजेपी-जेडीयू को करारी शिकस्त दी। उन्होंने 94,108 वोट हासिल कर सबा ज़फर को 52,515 मतों के भारी अंतर से पराजित किया, जबकि अब्दुल जलील मस्तान तीसरे स्थान पर खिसक गए।
जातीय समीकरण
अमौर का जातीय समीकरण भी यहां की राजनीति की धुरी रहा है। मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं और उनकी संख्या इतनी अधिक है कि किसी भी दल की जीत-हार तय करने में अहम हो जाते हैं। इसके अलावा यादव और कोइरी समुदाय भी इस सीट पर संतुलन बिगाड़ने या बनाने का काम करते हैं। यही कारण है कि हर चुनाव में पार्टियां मुस्लिम और यादव वोटरों को साधने की रणनीति पर जोर देती हैं।
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2025 के चुनाव से पहले अमौर में मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। AIMIM के अख्तरुल इमान अपनी जीत दोहराने की कोशिश करेंगे, जबकि कांग्रेस अपने गढ़ को फिर से पाने के लिए रणनीति बना रही है। भाजपा और जेडीयू भी यहां पर समीकरण बदलने की तैयारी में हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि बदलते जातीय और राजनीतिक समीकरणों के बीच जनता का जनादेश किस दल के पक्ष में जाता है।






















