बिहार की राजनीति में अररिया विधानसभा सीट, निर्वाचन क्षेत्र संख्या 49 (Araria Vidhansabha) हमेशा से सुर्खियों में रही है। अररिया जिला मुख्यालय से जुड़ी यह सीट न सिर्फ सीमांचल की राजनीतिक धड़कन मानी जाती है, बल्कि राज्यस्तरीय सत्ता समीकरण को भी प्रभावित करती है। इस क्षेत्र की चुनावी तस्वीर में कांग्रेस, राजद और जदयू लंबे समय से मजबूत दावेदार रहे हैं, वहीं भाजपा ने भी हाल के वर्षों में अपने जनाधार को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाया है।
चुनावी इतिहास
1952 से अब तक अररिया विधानसभा क्षेत्र में 17 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें दो उपचुनाव शामिल हैं। इस अवधि में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 6 बार जीत दर्ज कर अपना प्रभाव दिखाया है। शीतल प्रसाद गुप्ता, श्रीदेव झा, हलीमुद्दीन अहमद और आबिदुर रहमान जैसे नेताओं ने कांग्रेस का परचम यहां फहराया। वहीं निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी चार बार जीत हासिल कर यह संदेश दिया कि अररिया की जनता पारंपरिक दलों के विकल्प को भी स्वीकार करने का माद्दा रखती है।
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हाल के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो 2015 में कांग्रेस उम्मीदवार आबिदुर रहमान ने लोजपा के अजय कुमार को करारी शिकस्त दी थी। इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में भी आबिदुर रहमान ने जनता दल यूनाइटेड की शगुफ्ता अज़ीम को 47,936 वोटों के भारी अंतर से हराकर कांग्रेस की पकड़ मजबूत की। यह लगातार दूसरी जीत कांग्रेस के लिए राहत भरी खबर थी, वहीं भाजपा और जदयू के लिए चेतावनी कि सीमांचल की राजनीति इतनी आसान नहीं है।
जातीय समीकरण
2009 के परिसीमन के बाद अररिया विधानसभा का भूगोल और जातीय समीकरण पूरी तरह बदल गया। इस बदलाव का सबसे बड़ा असर मुस्लिम बहुल जनसंख्या की बढ़त के रूप में दिखा। वर्तमान में मुस्लिम मतदाता लगभग 42.9% हैं, जिनमें कुल्हैया और शेखड़ा समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनके अलावा अंसारी, शेरशाहबादी, सब्जीफ्रॉश और फकीर जातियों का भी असर रहता है। दूसरी ओर, हिंदू मतदाता करीब 56.6% हैं, जिनमें यादव, मंडल, कुर्मी, कोइरी, भूमिहार, राजपूत और ब्राह्मण जातियां अहम भूमिका निभाती हैं। यादव और मंडल समुदाय यहां की राजनीति में विशेष प्रभाव रखते हैं।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अररिया विधानसभा का आगामी चुनाव पूरी तरह जातीय और साम्प्रदायिक समीकरणों पर आधारित रहेगा। कांग्रेस जहां अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव गठजोड़ पर भरोसा कर रही है, वहीं भाजपा और जदयू का फोकस गैर-मुस्लिम और गैर-यादव वोट बैंक को एकजुट करने पर है। इसके अलावा युवा मतदाताओं और विकास के मुद्दे भी निर्णायक साबित हो सकते हैं।
अगर मौजूदा राजनीतिक हालात पर नजर डालें तो कांग्रेस अभी भी इस सीट पर मजबूत स्थिति में है, लेकिन भाजपा और जदयू की बढ़ती सक्रियता को नज़रअंदाज करना आसान नहीं होगा। अररिया विधानसभा चुनाव का नतीजा न सिर्फ सीमांचल बल्कि पूरे बिहार की राजनीति को नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है।






















