बिहार की सियासत और शिक्षा व्यवस्था के संगम पर खड़ा एक मामला इन दिनों चर्चा में है, जहां नाम की तकनीकी खामी ने एक बड़े फैसले को फिलहाल रोक दिया है. पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में लिटरेरी साइंस के प्रोफेसर के तौर पर प्रस्तावित नियुक्ति से पहले बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी (Ashok Chaudhary) का मामला अटक गया है. वजह कोई राजनीतिक विवाद नहीं, बल्कि शैक्षणिक दस्तावेजों और चुनावी हलफनामे में दर्ज नामों का अलग-अलग होना है.
दरअसल, अशोक चौधरी ने बिहार स्टेट यूनिवर्सिटी सर्विस कमीशन यानी BSUSC की भर्ती परीक्षा पास की थी. लिखित परीक्षा और इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी होने के बाद 274 चयनित उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम भी शामिल था. नियुक्ति की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में पहुंच ही रही थी कि दस्तावेजों की जांच के दौरान एक अहम तकनीकी बिंदु सामने आ गया. उनके शैक्षणिक प्रमाण पत्रों में नाम ‘अशोक कुमार’ दर्ज है, जबकि चुनावी हलफनामे और सार्वजनिक जीवन में वह ‘अशोक चौधरी’ नाम का उपयोग करते हैं.
यही नाम का अंतर नियुक्ति प्रक्रिया में सबसे बड़ी बाधा बन गया. नियमों के तहत आयोग और विश्वविद्यालय के लिए यह स्पष्ट होना जरूरी है कि सभी दस्तावेज एक ही व्यक्ति से संबंधित हों. इसी कारण शिक्षा विभाग ने इस मामले में सीधे नियुक्ति का फैसला लेने के बजाय इसे दोबारा बिहार स्टेट यूनिवर्सिटी सर्विस कमीशन को राय और स्पष्टीकरण के लिए भेज दिया है.
शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने पूरे मामले पर स्थिति साफ करते हुए कहा कि सरकार ने केस की समीक्षा की है और कुछ विशेष बिंदुओं पर आयोग से अतिरिक्त टिप्पणियां मांगी गई हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रोफेसर या असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति की जिम्मेदारी आयोग की होती है, न कि शिक्षा विभाग की. विभाग केवल नियमों के अनुपालन और प्रक्रिया की निगरानी करता है.
कांग्रेस-RJD विवाद, नीतीश की सेहत और निशांत की राजनीति पर मंत्री श्रवण कुमार का बेबाक बयान..
इस बीच यह भी सामने आया है कि अशोक चौधरी को एक शैक्षणिक संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति नहीं मिल पाई थी, क्योंकि उनके प्रमाण पत्रों में तकनीकी कमियां पाई गई थीं. यही वजह है कि सरकार इस बार किसी भी तरह की जल्दबाजी या विशेष रियायत देने के मूड में नहीं दिख रही है. शिक्षा मंत्री ने साफ कहा है कि नियम सभी के लिए समान हैं, चाहे वह मंत्री हों या कोई सामान्य अभ्यर्थी.
फिलहाल पूरा मामला आयोग की रिपोर्ट पर टिका हुआ है. BSUSC से जवाब आने के बाद ही यह तय होगा कि नाम में अंतर को तकनीकी त्रुटि मानकर सुधारा जा सकता है या यह नियुक्ति प्रक्रिया में गंभीर बाधा बनेगा. तब तक पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर पद पर अशोक चौधरी की नियुक्ति पर अनिश्चितता बनी रहेगी.


















