राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने बिहार की सियासत पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चुनावी वादों और बीजेपी के साथ उनके रिश्तों पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें अब खुद समझ आ गया है कि बीजेपी उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी, इसलिए उन्होंने मैनिफेस्टो के दौरान कोई ठोस वादा नहीं किया।
गहलोत ने तंज भरे लहजे में कहा कि, “नीतीश कुमार जी कह रहे हैं? कब कहा उन्होंने? मुझे बहुत डाउट है। कल उनका मैनिफेस्टो रिलीज हुआ, लेकिन वो 26 सेकंड में वहां से उठ गए। मीडिया वालों ने कहा—इतनी छोटी प्रेस कॉन्फ्रेंस उन्होंने जिंदगी में नहीं देखी। ये स्थिति बता रही है कि नीतीश जी अब बीजेपी पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।”

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन अंदर से दरक चुका है, और बिहार के मतदाता अब बदलाव के मूड में हैं। उन्होंने कहा कि जो सर्वे सामने आ रहे हैं, उनमें तेजस्वी यादव नंबर वन पर चल रहे हैं, और जनता स्पष्ट रूप से महागठबंधन के पक्ष में झुक रही है।
अशोक गहलोत ने आगे कहा कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की सभाओं में जिस तरह का उत्साह देखने को मिल रहा है, वह साबित करता है कि बिहार में कांग्रेस और राजद का गठबंधन मजबूत स्थिति में है। उन्होंने कहा कि “राहुल जी की यात्रा को आज भी लोग याद करते हैं, उस दौरान बिहार में जो भीड़ उमड़ी थी, उसने दिखा दिया था कि जनता बदलाव चाहती है।”
गहलोत ने बीजेपी और चुनाव आयोग के रवैए पर भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बीजेपी लोकतंत्र को कमजोर करने की दिशा में काम कर रही है। महाराष्ट्र और हरियाणा का उदाहरण देते हुए गहलोत बोले कि “इन राज्यों में जिस तरह धनबल और दबाव की राजनीति चली, वही अब बिहार में दिख रही है। बीजेपी हर विपक्षी आवाज को कुचलने की कोशिश में है।”
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उन्होंने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि आजादी के बाद पहली बार उन्होंने इतना “तानाशाही रवैया” देखा है। गहलोत बोले, “शिकायत करने वाले को ही आयोग सवालों से घेर रहा है, एफिडेविट मांग रहा है, जो बेहद खतरनाक संकेत है।”
गहलोत ने चेतावनी दी कि अगर यही हालात रहे तो आने वाले समय में देश में सिर्फ नाम भर की डेमोक्रेसी रह जाएगी। उन्होंने कहा, “अगर एनडीए का यही खेल चलता रहा, तो देश के लोकतंत्र पर गंभीर खतरा मंडराएगा। जनता को अब तय करना है कि क्या वे लोकतंत्र बचाना चाहती है या उसे नाम मात्र का तमाशा बनने देना चाहती है।”






















