बिहार के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए 19 फरवरी से साक्षात्कार प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। लेकिन यह बहाली ऐसे समय में की जा रही है जब राज्य के विश्वविद्यालयों में अनुभव प्रमाण पत्रों की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ चुके हैं। बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) खुद इस पर सवाल खड़ा कर चुका है, जिससे पूरी भर्ती प्रक्रिया पर संदेह की स्थिति बनी हुई है।
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बीएन मंडल विश्वविद्यालय पर विवाद, खुद ही जांचकर्ता और खुद ही दोषी!
सबसे बड़ा विवाद बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के जारी किए गए अनुभव प्रमाण पत्रों को लेकर सामने आया है। प्रमाण पत्रों की वैधता पर सवाल उठे हैं और जांच की जिम्मेदारी भी उसी विश्वविद्यालय को दे दी गई है, जिस पर अनियमितता का आरोप है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे चोरी का आरोप लगने के बाद उसी व्यक्ति को अपना जज बना दिया जाए!
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब प्रमाण पत्र जारी करने वाला विश्वविद्यालय ही जांच करेगा, तो निष्पक्षता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? क्या इस बहाली प्रक्रिया में ऐसे अभ्यर्थी शामिल हो रहे हैं, जिनके प्रमाण पत्र फर्जी हो सकते हैं? क्या किसी बाहरी और स्वतंत्र एजेंसी से इसकी निष्पक्ष जांच कराई जाएगी?
नियुक्ति में पारदर्शिता पर सवाल, एक्सपर्ट की भूमिका संदेहास्पद
अभ्यर्थियों का कहना है कि बहाली प्रक्रिया में कई अनियमितताएं हैं। अनुभव प्रमाण पत्र के आधार पर 10 नंबर दिए जाते हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर हेरफेर किया गया है। कई योग्य उम्मीदवारों को कम अनुभव अंक देकर बाहर कर दिया गया, जबकि अनुभवहीन लोगों को अधिक अंक मिल गए। साक्षात्कार के लिए एक ही विषय में बार-बार वही एक्सपर्ट बुलाए गए, जिससे निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। अभ्यर्थियों की मांग है कि यदि इस मामले की जांच निगरानी विभाग या किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए, तो सच्चाई सामने आ सकती है।
क्या नियुक्तियों की जांच होगी या फिर मामला दबा दिया जाएगा? बिहार में शिक्षा व्यवस्था और सरकारी नौकरियों की बहाली पहले भी विवादों में रही है। अगर फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किए जा रहे हैं, तो क्या भविष्य में इसकी जांच होगी? क्या बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग यह गारंटी दे सकता है कि पहले से हुई नियुक्तियों में किसी फर्जी प्रमाण पत्र धारक की बहाली नहीं हुई है?