बिहार विधानसभा का बहादुरगंज (Bahadurganj Vidhansabha) क्षेत्र (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 52) हमेशा से राजनीतिक दलों के लिए अहम रहा है। किशनगंज जिले की यह सीट 1952 में अस्तित्व में आई और तब से अब तक 17 बार चुनाव देख चुकी है। इसमें एक उपचुनाव भी शामिल है। बहादुरगंज को लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है, जहां कांग्रेस ने दस बार जीत दर्ज की है। हालांकि समय के साथ यहां सियासत ने करवट ली और नए दलों ने अपनी पकड़ बनाने की कोशिशें तेज कर दीं।
चुनावी इतिहास
इस सीट पर अब तक कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी सिर्फ एक बार ही यहां जीत दर्ज कर पाई। इसके अलावा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल, जनता पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी को भी कभी-कभार सफलता मिली। 2015 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी तौसीफ आलम ने 53,533 वोट (33.56%) पाकर जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के अवध बिहारी सिंह को हराया था, जिन्हें 39,591 वोट (24.82%) मिले। उस समय कांग्रेस, राजद और जेडीयू महागठबंधन में साथ थे, जिससे कांग्रेस को मजबूती मिली थी।
Sikti Vidhansabha: मुस्लिम-यादव समीकरण और बीजेपी की पकड़ से जमीनी सियासत का गणित
लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में बहादुरगंज ने एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखा। यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पहली बार सेंध लगाई और सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई। आरजेडी छोड़कर एआईएमआईएम में शामिल हुए मोहम्मद अंजार नईमी ने वीआईपी पार्टी के उम्मीदवार लखन लाल पंडित को 45,215 वोटों के विशाल अंतर से मात दी। नईमी को 85,472 वोट मिले, जबकि लखन लाल पंडित को सिर्फ 40,494 वोट मिल सके। इस परिणाम ने स्पष्ट कर दिया कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में एआईएमआईएम की पकड़ तेजी से मजबूत हो रही है और पारंपरिक पार्टियों की जड़ें हिल रही हैं।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो बहादुरगंज की राजनीति पूरी तरह मुस्लिम मतदाताओं के इर्द-गिर्द घूमती है। यहां लगभग 65 प्रतिशत वोटर मुस्लिम हैं, जबकि यादव, रविदास और ब्राह्मण मतदाता भी चुनावी परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। मतदाताओं की कुल संख्या करीब 2,55,577 है, जिनमें 53.31% पुरुष और 46.68% महिलाएं शामिल हैं। यह जनसांख्यिकीय तथ्य बताता है कि यदि मुस्लिम वोट बैंक एकजुट रहा तो किसी भी उम्मीदवार की जीत तय है, लेकिन बिखराव की स्थिति में समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।
Jokihat Assembly Election 2025: तस्लीमुद्दीन परिवार बनाम नई सियासी चुनौतियाँ
बहादुरगंज विधानसभा की एक बड़ी चुनौती यहां का आर्थिक पिछड़ापन और उद्योगों की कमी है। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के बावजूद यहां औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है। यही वजह है कि रोजगार की कमी और श्रम पलायन इस इलाके की सबसे गंभीर समस्या बनी हुई है। यही मुद्दे बार-बार चुनावी एजेंडे में उभरते हैं, लेकिन समाधान की दिशा में ठोस पहल नहीं हो पाई है।
2025 के विधानसभा चुनाव में बहादुरगंज सीट पर मुकाबला और भी दिलचस्प होने वाला है। कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश करेगी, वहीं एआईएमआईएम इस सफलता को दोहराने के प्रयास में जुटी रहेगी। भाजपा और जेडीयू जैसी पार्टियां भी मुस्लिम बहुल इस सीट पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए नए समीकरण साधने की रणनीति बना सकती हैं। सबसे अहम सवाल यही रहेगा कि क्या मुस्लिम वोटर फिर से एकजुट होकर किसी एक दल को बढ़त दिलाते हैं या उनका बिखराव मुकाबले को त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय बना देगा।






















