दरभंगा जिले की बहादुरपुर विधानसभा सीट Bahadurpur Vidhansabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 85) बिहार की राजनीति में खासा महत्व रखती है। यह सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई और पहली बार 2010 में यहां चुनाव हुआ। तब से लेकर अब तक हुए तीनों विधानसभा चुनावों (2010, 2015 और 2020) ने इस सीट की सियासी तस्वीर और गठबंधन समीकरणों को बार-बार बदला है।
चुनावी इतिहास
2010 के पहले चुनाव में जेडीयू के मदन सहनी ने कड़े मुकाबले में आरजेडी उम्मीदवार हरिनंदन यादव को हराया था। जीत का अंतर मात्र 700 वोट से भी कम रहा, जो इस सीट के मतदाताओं की बारीकियों और अप्रत्याशित रुझानों को साफ दर्शाता है। उस समय जेडीयू और बीजेपी गठबंधन में थे, जिसने सहनी को अतिरिक्त बढ़त दिलाई।
Hayaghat Vidhansabha : बदलते समीकरणों के बीच किसके पाले में जाएगी सत्ता की चाबी?
2015 का चुनाव यहां पूरी तरह अलग सियासी समीकरण लेकर आया। जेडीयू ने सीट आरजेडी के लिए छोड़ दी और आरजेडी ने भोला यादव को उम्मीदवार बनाया। भोला यादव ने बीजेपी के हरि सहनी को 17 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। इस चुनाव ने साफ कर दिया कि महागठबंधन के साथ होने पर यादव वोट और अल्पसंख्यक समुदाय निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
2020 का विधानसभा चुनाव फिर से पलटा। जेडीयू ने इस सीट पर कब्जा जमाया और मदन सहनी ने एक बार फिर जीत दर्ज की। उन्होंने आरजेडी के रमेश चौधरी को 2629 वोटों से हराया। दिलचस्प यह रहा कि यहां का मुकाबला बेहद करीबी रहा—जेडीयू को 38.5% वोट और आरजेडी को 37.03% वोट मिले। इस चुनाव में लोजपा उम्मीदवार देवेंद्र कुमार झा भी करीब 17 हजार वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
जातीय और सामाजिक समीकरण
बहादुरपुर विधानसभा का चुनाव जातीय संतुलन पर टिका होता है। मुस्लिम, यादव और ब्राह्मण मतदाता यहां की राजनीति का केंद्र हैं। इनके अलावा राजपूत, भूमिहार और पासवान मतदाता भी समीकरण को प्रभावित करते हैं। इस सीट पर लगभग 2.68 लाख से ज्यादा मतदाता हैं, जिनमें 1,43,968 पुरुष और 1,24,114 महिला वोटर शामिल हैं। यह आंकड़ा साफ करता है कि महिलाओं की भागीदारी भी यहां की राजनीति में निर्णायक साबित हो सकती है।
सियासी महत्व और 2025 की जंग
बहादुरपुर सीट बिहार की राजनीति के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि यहां हर चुनाव में नए समीकरण बनते और बिगड़ते रहे हैं। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन हो या महागठबंधन का तालमेल, हर दौर में इस सीट का रुख सत्ता समीकरणों को प्रभावित करता रहा है। आने वाले चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि मदन सहनी अपनी पकड़ बनाए रख पाते हैं या आरजेडी व महागठबंधन फिर से मजबूत वापसी करता है।
















