कटिहार जिले की बलरामपुर विधानसभा Balrampur Vidhan Sabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 65) बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से एक है, जिसने बीते एक दशक में लगातार राजनीतिक हलचल पैदा की है। महानंदा नदी से घिरे इस क्षेत्र की भौगोलिक और सांस्कृतिक बनावट इसे विशेष बनाती है। पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे होने के कारण यहां की सामाजिक-सांस्कृतिक धारा मिश्रित है और यही चुनावी समीकरणों में निर्णायक भूमिका निभाती है। 2008 के परिसीमन के बाद बलरामपुर विधानसभा का गठन हुआ, जिसमें बलरामपुर और बारसोई प्रखंडों को शामिल किया गया।
राजनीतिक दृष्टि से बलरामपुर सीट को सीपीआई(एमएल)(लिब्रेशन) का गढ़ माना जाता है। महबूब आलम की सियासी पकड़ ने इस क्षेत्र को लंबे समय तक वामपंथी प्रभाव में रखा है। हालांकि 2010 का चुनाव इस परंपरा से अलग था, जब निर्दलीय उम्मीदवार दुलाल चंद्र गोस्वामी ने आलम को मात देकर सभी को चौंका दिया था। यह नतीजा दर्शाता है कि यहां जनता जातीय और वैचारिक राजनीति से अलग होकर भी मतदान कर सकती है।
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2015 का चुनाव वामपंथियों की वापसी का गवाह बना। महबूब आलम ने बीजेपी प्रत्याशी वरुण कुमार झा को 20 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराकर अपनी पकड़ और मजबूत की। 2020 में तो आलम ने रिकॉर्ड बहुमत से जीत दर्ज की। उन्हें 1,04,489 वोट मिले, जबकि वीआईपी प्रत्याशी बरुन कुमार झा केवल 50,892 वोट ही हासिल कर सके। 53 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर ने यह साबित कर दिया कि बलरामपुर फिलहाल भाकपा माले के लिए सुरक्षित क्षेत्र है।
बलरामपुर की राजनीति में जातीय और धार्मिक समीकरणों की गहरी छाप है। यहां मुस्लिम समुदाय लगभग 53% आबादी के साथ निर्णायक स्थिति में है। यादव मतदाता भी अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की संख्या क्रमशः 7.89% और 3.89% है। यही सामाजिक समीकरण महबूब आलम की जीत का मजबूत आधार बनते हैं।
लेकिन सवाल यह भी है कि क्या आने वाले विधानसभा चुनावों में यह समीकरण ज्यों का त्यों रहेंगे? बीजेपी और जेडीयू जैसे दल लगातार इस क्षेत्र में अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। वीआईपी का पिछली बार का प्रदर्शन बताता है कि विपक्षी दल भी यहां एकजुट होकर चुनौती पेश कर सकते हैं। अगर विपक्षी मतों का ध्रुवीकरण हुआ तो बलरामपुर सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो सकता है। अभी तक के आंकड़े वामपंथियों को बढ़त दिलाते हैं, लेकिन बदलते राजनीतिक परिदृश्य में बलरामपुर का अगला चुनाव निश्चित तौर पर बिहार की सियासत में बड़ी हलचल मचाने वाला साबित हो सकता है।