ढाका : बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसले में जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ नेता ATM अजहरुल इस्लाम को 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों के मामले में बरी कर दिया। कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय अपराध Tribunal (ICT) द्वारा दी गई मौत की सजा को पलटते हुए अजहरुल की तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
अजहरुल इस्लाम पर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर नरसंहार, बलात्कार और मानवता के खिलाफ अपराध करने का आरोप था। इस युद्ध में बांग्लादेशी सूत्रों के अनुसार, करीब 30 लाख लोग मारे गए थे और 2 लाख से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई थीं, हालांकि पाकिस्तान इन आंकड़ों को खारिज करता रहा है। अजहरुल को 2014 में ICT ने दोषी ठहराया था और मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उनकी अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की अपीलीय डिवीजन ने सात जजों की पूर्ण पीठ के साथ यह फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि अजहरुल के खिलाफ सबूत पर्याप्त नहीं थे। इस फैसले से पहले जमात-ए-इस्लामी के अमीर ने अजहरुल की बिना शर्त रिहाई की मांग की थी, खासकर ईद-उल-फितर से पहले। कोर्ट के इस कदम को राजनीतिक दबाव या नए सबूतों का नतीजा माना जा रहा है, हालांकि इसकी विस्तृत जानकारी अभी सामने नहीं आई है।
1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम पाकिस्तानी सेना और मुक्ति बाहिनी के बीच एक खूनी संघर्ष था, जिसमें भारत की भी अहम भूमिका रही। 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सैन्य समर्पण माना जाता है। इस युद्ध के दौरान जमात-ए-इस्लामी पर पाकिस्तानी सेना के साथ सहयोग करने और रजाकार मिलिशिया के जरिए अत्याचार करने का आरोप लगता रहा है।
2009 में बांग्लादेश सरकार द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय अपराध Tribunal (ICT) 1971 के युद्ध अपराधों के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा देने के लिए बनाया गया था। हालांकि, इस Tribunal की कार्यप्रणाली और निष्पक्षता पर पाकिस्तान सहित कई पक्षों ने सवाल उठाए हैं। अजहरुल का मामला भी उन विवादास्पद मुकदमों में से एक रहा है, जिन्हें राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा माना जाता है।
जमात-ए-इस्लामी ने इस फैसले का स्वागत किया है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि यह फैसला उनके लंबे संघर्ष की जीत है। दूसरी ओर, इस फैसले से उन पीड़ितों के परिवारों में नाराजगी देखी जा रही है, जो युद्ध के दौरान अपने परिजनों को खो चुके हैं।
यह फैसला बांग्लादेश की राजनीति और 1971 के युद्ध के इतिहास को लेकर चल रहे तनाव को और गहरा सकता है। इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी नजर बनी हुई है।