बिहार की सियासी धरती पर जैसे-जैसे 2025 के विधानसभा चुनाव की गर्मी बढ़ रही है, वैसे-वैसे गठबंधनों की असली परीक्षा भी सामने आ रही है। आम धारणा यह रही है कि महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर तमाम फार्मूले फंसते हैं, जबकि एनडीए में सब कुछ सहज और ‘मैनेज’ हो जाता है। लेकिन हकीकत इससे कहीं जटिल और दिलचस्प है।
अब तस्वीर साफ हो रही है कि एनडीए में सीट शेयरिंग की चुनौती महागठबंधन से कम नहीं, बल्कि कहीं ज़्यादा पेचीदा होने जा रही है। जिस प्रकार घटक दलों की संख्या बढ़ी है और नेताओं के बयानों में तल्खी झलकी है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि एनडीए के भीतर गहरी खींचतान शुरू हो चुकी है।
चिराग की चुनौती: ‘मुख्यमंत्री पद’ की चाह या सीटों पर कब्जा?
सबसे बड़ा दबाव फिलहाल चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) की ओर से है। चिराग ने जहां अपने बयानों से यह संकेत दिया है कि वे खुद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं, वहीं उनके सांसदों के सुर भी कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं। सवाल उठता है—क्या यह एलजेपी आर की ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग का दबाव नहीं है?
2020 में चिराग ने एनडीए से अलग होकर 134 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सिर्फ एक सीट जीत सके। इस बार यदि वो गठबंधन का हिस्सा बनते हैं तो 25 से 28 सीटों की मांग कर सकते हैं। क्या बीजेपी और जेडीयू इतनी सीटें देने को तैयार होंगी?
2020 बनाम 2025: सीटों का आंकड़ा और राजनीतिक गणित
2020 के विधानसभा चुनाव में सीट वितरण इस प्रकार था:
- बीजेपी: 110 सीटों पर लड़ी, जीती 74
- जेडीयू: 115 सीटों पर लड़ी, जीती 43
- हम (जीतनराम मांझी): 7 सीटों पर लड़ी, जीती 4
- वीआईपी (मुकेश सहनी): 11 सीटों पर लड़ी, जीती 4
अब 2025 में वीआईपी महागठबंधन के साथ है, लेकिन चर्चा है कि मुकेश सहनी फिर एनडीए में लौट सकते हैं। अगर ऐसा हुआ, तो सीटों का संतुलन और बिगड़ जाएगा।
वर्तमान NDA के घटक दल हैं:
- BJP
- JDU
- LJP (R)
- HAM
- RLM (उपेंद्र कुशवाहा)
BJP-JDU का तनाव: ‘बड़े भाई’ की होड़
चर्चा है कि BJP इस बार 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है। लेकिन जेडीयू अपनी ‘बड़े भाई’ की भूमिका से पीछे हटने को तैयार नहीं। उनके लिए 101 सीटों का दावा किया जा रहा है। यह सीधे तौर पर BJP-JDU के बीच शक्ति प्रदर्शन का संकेत देता है।
नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का बयान, कि “अमित अंकल ने कहा है पापा ही सीएम बनेंगे,” सीधे तौर पर BJP को यह याद दिलाने वाला संदेश है कि नीतीश ही चेहरा रहेंगे।
छोटे दल, बड़ी दावेदारी
एलजेपी (आर) को जहां 25–28 सीटें मिल सकती हैं, वहीं हम और आरएलएम के लिए केवल 15 सीटें छोड़ी जा सकती हैं। अगर मुकेश सहनी भी एनडीए में आ जाते हैं, तो इन्हीं 15 सीटों से कटौती होनी तय है। यानी जितने अधिक दल, उतनी अधिक जद्दोजहद।
चुनावी रणभूमि में PM मोदी की एंट्री
एनडीए को संगठित दिखाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, और जेपी नड्डा के बिहार दौरों की योजना तैयार है। लेकिन सवाल यही है—क्या शीर्ष नेतृत्व के आने भर से सीटों का बंटवारा आसान हो जाएगा?
NDA में ‘सीटों की जंग’ अभी बाकी है
जिन्हें लगता था कि एनडीए में सब कुछ “ऑटोमैटिक” होता है, उन्हें यह चुनाव शायद गलत साबित करे। बिहार में गठबंधन जितना बड़ा होगा, उतनी ही छोटी हो जाएंगी सीटें—और ये जादुई गणित ही इस बार का सबसे बड़ा राजनीतिक थ्रिलर बन सकता है।