बेतिया के जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने कृषि विभाग अंतर्गत पौधा संरक्षण से संबंधित कार्यों की समीक्षा की। उन्होंने बताया कि समीक्षा के दौरान ये पता चला कि जिन जगहों पर केला का अधिक उत्पादन होता है, वहां केले की फसल में सिगाटोका रोग एवं पनामा विल्ट रोग फैलने की संभावना है। उन्होंने कहा कि जिले में इसकी रोकथाम के लिए विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुरूप समुचित उपाय सुनिश्चित किया जाय। साथ ही उन्होंने ये निर्देश भी दिया है कि केला उत्पादकों के बीच केला फसल में लगने वाले रोगों की पहचान एवं प्रबंधन का व्यापक प्रचार-प्रसार कराना सुनिश्चित किया जाए।
दो तरह के होते हैं सिगाटोका रोग
- पीला सिगाटोका-मायकोस्फेरेल्ला म्युसिकोला नामक फफूंद से लगने वाला रोग है। जिसके लक्षण केले के नये पत्ते के ऊपरी भाग पर हल्का पीला दाग या धारीदार लाईन के रूप में परिलक्षित होता है। बाद में धब्बे बड़े तथा भूरे रंग के हो जाते हैं, जिसका केन्द्र हल्का कत्थई रंग होता है।
- काला सिगाटोका-मायकोस्फेरेल्ला फिजियेन्सिस नामक फफूंद से लगने वाला रोग है। जिसके लक्षण केले के पत्तियों के निचले भाग पर काला धब्बा, धारीदार लाईन के रूप में परिलक्षित होता है।
सिगाटोका रोग लगने ऐसे करें रोकथाम
- कृषक बंधु खेत को खर-पतवार से मुक्त एवं साफ-सुथरा रखें।
- खेत से अधिक पानी की निकासी कर लें।
- प्रतिरोधी किस्म के पौधे लगायें।
- जैव कीटनाशी, ट्राइकोडरमा विरीडी एक किलोग्राम 25 किलोग्राम गोबर खाद के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- रासायनिक फफूंदनाशी कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 50 प्रतिशत घु0चू0 03 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत घु0चू0 02 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा थायोफिनेट मिथाईल 75 प्रतिशत घु0चू0 01 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
केले की फसल में होता है पनामा विल्ट रोग
पौधा संरक्षण के सहायक निदेशक ने बताया कि केला फसल में लगने वाला दूसरा रोग पनामा विल्ट है। बारिश के दिनों में जल निकासी प्रबंधन नहीं रहने के कारण, अधिक तापमान वाले जगहों पर केले के फसल में यह रोग फैलता है। अचानक सम्पूर्ण पौधे का सूखना या नीचे का हिस्से की पत्ती का सूखना इस मूल पर्णवृत तथा तने के अंदर से सड़ी हुई मछली की दुर्गन्ध आती है।
पनामा विल्ट रोग से ऐसे करें रोकथाम
- एक किलो ट्राइकोडरमा भिरीडी 25 किलोग्राम गोबर खाद के साथ प्रति एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें।
- प्रतिरोधी किस्म के पौधे लगायें।
- सकर को 30 मिनट तक कार्बेन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में डुबाने के बाद रोपनी करें।
- कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घु0चू0 का 01 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- केले की पत्तियां चिकनी होती है। अतः घोल में स्टीकर मिला देना लाभदायक होगा।