[Team Insider]: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chif Minister Nitish Kumar) द्वारा बुलाई गई एससी/एसटी अधिनियम (SC/ST Act) के मामलों की समीक्षा बैठक से पता चला है कि, बिहार में पिछले 10 वर्षों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत 67,163 मामले दर्ज किए गए हैं। यदि 39,730 मामलों को जोड़ दिया जाए, तो यह 1,06,893 मामलों में आता है। इनमें से 44,986 मामले अभी भी लंबित हैं।
सबसे अधिक मामले 2020 में दर्ज किए गए
पिछले 10 वर्षों में, अदालतों ने केवल 872 ऐसे मामलों में फैसला सुनाया है। केवल 75 मामलों में 8.6 प्रतिशत की दर से दोष सिद्ध हुई है। बिहार पुलिस के आंकड़ों से पता चला है कि अधिनियम के तहत सबसे अधिक 7,574 मामले 2020 में दर्ज किए गए, इसके बाद 2018 में 7,125 और 2017 में 6,826 मामले दर्ज किए गए। जनवरी 2021 से नवंबर 2021 के बीच 44,150 मामलों में से सिर्फ 872 मामलों में फैसला सुनाया गया था।
धन की अनुपलब्धता के कारण 8,108 मामलों में 5,232 मामले लंबित
अत्याचार पीड़ितों के परिवारों (हत्या के मामले में) को 8.5 लाख रुपये का मुआवजा मिलता है। मुआवजे के 8,108 मामलों में से अब तक केवल 2,876 का ही निपटारा किया जा सका है, जबकि 5,232 मामले लंबित हैं। जिलों ने अधिकतर मामलों में, मुआवजे की राशि के भुगतान में देरी के मुख्य कारण के रूप में “धन की अनुपलब्धता” का हवाला दिया है।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (आपराधिक जांच विभाग) अनिल किशोर यादव ने, द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सीएम पहले ही मामलों के त्वरित कार्रवाई करने का आदेश दे चुके हैं। हमने प्रत्येक जिले को उचित और त्वरित निगरानी कर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं, ताकि दोषसिद्धि की उच्च दर सुनिश्चित की जा सके।