Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक बड़ा और दिलचस्प फैक्टर फिर से चर्चा में है- पहली बार वोट डालने वाले युवा मतदाता। इस बार राज्य में 14.01 लाख नए वोटर जुड़ चुके हैं। औसतन हर विधानसभा क्षेत्र में करीब 5,765 ऐसे मतदाता होंगे जो पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। सवाल यह है कि इन नए वोटरों का झुकाव किस ओर जाएगा और क्या ये राज्य के चुनावी नतीजों को प्रभावित करने में निर्णायक साबित होंगे?
कम मार्जिन वाली सीटों पर नए वोटरों का प्रभाव
बिहार में अब चुनाव एक बेहद करीबी मुकाबले में बदल चुके हैं। पिछली बार यानी 2020 के विधानसभा चुनाव में 36 सीटें ऐसी थीं जहां जीत का अंतर तीन हजार या उससे भी कम वोटों का था। इनमें से 17 सीटें महागठबंधन के पास गईं, 19 एनडीए के खाते में रहीं और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। इन 36 सीटों पर अब औसतन पांच हजार से अधिक नए वोटर हैं, जो नतीजों को पूरी तरह पलटने की क्षमता रखते हैं।
उदाहरण के तौर पर, सिमरी बख्तियारपुर, सुगौली, सिकटा, कल्याणपुर, किशनगंज, बखरी और खगड़िया जैसी सीटों पर 2020 में बेहद मामूली अंतर से जीत हुई थी। ऐसे में यहां नए वोटर निर्णायक भूमिका में होंगे। वहीं एनडीए की ओर से रानीगंज, हाजीपुर, मुंगेर, बरबीघा और टिकारी जैसी सीटें भी ऐसे क्षेत्रों में शामिल हैं जहां 2025 में नए मतदाता जीत का समीकरण बदल सकते हैं।
2015 में नए वोटर बढ़े तो महागठबंधन को लाभ
2015 के विधानसभा चुनाव में करीब 24.13 लाख नए वोटर जुड़े थे। उस चुनाव में महागठबंधन की लहर चली थी—राजद ने 80, जदयू ने 71 और कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थीं। भाजपा तब 91 से गिरकर 53 सीटों पर सिमट गई थी। उस समय औसतन एक विधानसभा सीट पर करीब 9,930 नए वोटर थे। दिलचस्प बात यह है कि 41 सीटों पर जीत का अंतर 9,000 से भी कम था। यह दिखाता है कि 2015 के युवा मतदाताओं ने चुनावी दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई थी।
हालांकि, उस समय जातीय गोलबंदी ने कई क्षेत्रों में मतदान पैटर्न को प्रभावित किया, लेकिन यह स्पष्ट था कि युवा वोटरों का बड़ा हिस्सा बदलाव और विकास के एजेंडे से प्रभावित था।
2020 में घटे नए वोटर तो NDA को फायदा
2020 में पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं की संख्या घटकर 11.17 लाख रह गई। यानी पिछले चुनाव की तुलना में करीब 13 लाख कम नए वोटर। परिणामस्वरूप, एनडीए ने फिर से सत्ता हासिल की। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार को इस घटते युवा वोट प्रतिशत का अप्रत्यक्ष लाभ मिला।
उस चुनाव में 49 सीटें ऐसी थीं जहां जीत-हार का अंतर 4,500 वोटों से भी कम था। इनमें राजद और जदयू को 13-13, कांग्रेस को 9 और भाजपा को 8 सीटें मिली थीं। तेजस्वी यादव तब अक्सर कहते थे कि हम केवल 12 हजार वोटों से सरकार से बाहर रह गए। यह बयान बताता है कि हर वोट का वजन अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है।
2025 में क्या बदल सकता है समीकरण?
अब जब 2025 में नए मतदाताओं की संख्या फिर बढ़ रही है, तो एक बार फिर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि परिणामों पर इनका असर निर्णायक हो सकता है। बिहार की राजनीति में युवाओं का रुझान आमतौर पर मुद्दों पर निर्भर करता है- रोजगार, शिक्षा, प्रवास और विकास जैसे सवाल इन वोटरों के लिए सबसे बड़े विषय बनते हैं।
2025 का चुनाव इस मायने में दिलचस्प होगा कि युवा पहली बार केवल जातीय पहचान से आगे बढ़कर अपनी उम्मीदों के आधार पर फैसला कर सकते हैं। यह देखना बाकी है कि इस बार नए वोटरों की यह लहर महागठबंधन के पक्ष में जाती है या एनडीए के।






















